भारतीय कृषि को जीएम फसलों की नियामकीय अनुमति की जरूरत
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जेनेटिकली मॉडीफाइड या जीएम फसल ऐसी पौध है, जिनके डीएनए को जेनेटिक इंजीनियरिंग तरीके से मॉडीफाइ करके कृषि में उपयोग में लाया जाता है। भारत में जीएम क्राप्स रेग्युलेटर ने हाल ही में जीएम सरसों के बीज उत्पादन और परीक्षण को पर्यावरणीय मंजूरी दी है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो दो वर्षों में सरसों के बीज का व्यावसायिक उपयोग किया जा सकेगा। कुछ बिंदु –
- बीटी-कपास के बाद सरसों ऐसी दूसरी जीएम फसल होगी, जिसके व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति दी जा सकती है।
- भारत में खाद्य तेल का लगभग 60% आयात किया जाता है। आयात निर्भरता का यह स्तर खाद्य सुरक्षा को कमजोर करता है। ज्ञातव्य हो कि देशवासी वर्षों से जीएम सोयाबीन तेल का उपभोग कर रहे हैं। यह आयात अधिकतर उन देशों से होता है, जो जेनेटिकली मॉडिफाइड फसल पर निर्भर करते हैं। इन कारकों को देखते हुए यदि भारत की औसत उपज, वैश्विक उपज का लगभग आधी या एक तिहाई भी होती है, तो खाद्य तेल की कमी को सरसों के तेल से पूरा किया जा सकेगा।
- स्वदेशी जागरण मंच और किसानों का एक समूह जीएम फसलों का विरोध करता रहा है। सरकार के प्रतिनिधियों ने 2017 में संसदीय समिति को बताया था कि भारतीय नियामकों ने बीटी कॉटन, बीटी बैंगन और जीएम सरसों को जानवरों के चारे के रूप में सुरक्षित पाया है।
- इंडियन कांउसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च या आईसीएआर ने 2012 और 2015 के बीच महाराष्ट्र में बीटी कॉटन के प्रभाव पर अध्ययन करके पाया कि जीएम तकनीक को अपनाने से औसत बीज कपास की उपज में वृद्धि हुई है।
जीएम सरसों भी सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित अनुसंधान एवं विकास का परिणाम है। यह सिर्फ किसानों को ही नही, बल्कि भारतीय वैज्ञानिकों को भी बढ़ावा दे सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 28 अक्टूबर, 2022
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