जी एम सरसों

Afeias
05 Jul 2017
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Date:05-07-17

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हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेज़ल कमेटी (GEAC) ने जी एम सरसों के व्यावसायिक उत्पादन को मंजूरी दे दी है। जी एम फसलों का विरोध करने वाले समूहों ने पर्यावरण मंत्री से अपील की है कि वे जी ई ए सी की सिफारिशों को नामंजूर कर दें।पिछले एक दशक से भारत में जी एम फसलों के व्यावसायिक उत्पादन पर बहस चल रही है। सन् 2002 में बीटी कपास को मंजूरी दिए जाने के बाद बीटी बैंगन को लाने का प्रयत्न किया गया। परंतु 2010 में इसका जबर्दस्त विरोध हुआ। इस पर तत्कालीन पर्यावरण मंत्री ने बीटी बैंगन पर प्रतिबंध लगा दिया था।

  • जी एम फसलों का विरोध कई कारणों से किया जा रहा है

ऐसा कहा जा रहा है कि जीएम फसलों को मानव द्वारा खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग में लाए जाने के गंभीर और खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। हरित क्रान्ति के नाम पर बढ़े खाद और कीटनाशकों के बेहिसाब प्रयोग ने पहले ही लोगों के मन में अनेक शंकाओं के बीज बो रखे हैं। जी एम विरोधी समूह इस प्रकार का निर्णय लेने वाली संस्था, सरकार एवं जी एम तकनीक को प्रोत्साहित करने वाले उद्योग समूह के प्रति विश्वास नहीं रखता है। वह बार-बार उन एहतियाती सिद्धांतों की दुहाई दे रहा है, जो पर्यावरण संबंधी अनेक अंतरराष्ट्रीय समझौतों में शामिल किए गए हैं। ये सिद्धांत कहते हैं कि जी एम फसल के सुरक्षित होने के बारे में तब तक कहना मुश्किल है, जब तक कि व्यापक स्तर पर इसे वैज्ञानिक सर्वसम्मति न मिल जाए।

  • पारदर्शिता का अभाव

जीएम फसलों की नियमन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी के कारण भी लगातार शंकाएं बनी हुई हैं। इसकी सुरक्षा को लेकर किए जाने वाले परीक्षण उन्हीं संस्थाओं द्वारा किए जा रहे हैं, जो इसके व्यावसायिक उत्पादन की वकालत करती हैं। जैसे जीएम सरसों का परीक्षण दिल्ली विश्वविद्यालय ने किया है। दूसरे, जी ई ए सी ने परीक्षण के परिणामों को तब तक सार्वजनिक नहीं किया, जब तक जीएम विरोधी समूह न इसके लिए आरटीआई नहीं डाली। ऐसे कारणों से इसके विरोधी और भी भड़के हुए हैं।

बीटी बैंगन के संबंध में तत्कालीन मंत्री जयराम रमेश ने जीईएसी को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि ‘जनता का विश्वास जीतने हेतु दोबारा परीक्षण करवाया जाए।’अगर वास्तव में जी एम फसल उत्पाद को बढ़ाकर भारत को खाद्य सुरक्षा दे सकती है, तो इसके पैरोकारों को परीक्षणों में पारदर्शिता लाकर एक स्वच्छ वातावरण तैयार करना होगा। तभी इसका विरोध करने वाले भयमुक्त हो सकेंगे। अब इस तकनीक का पूरा दारोमदार उन लोगों पर है, जो इसके प्रवर्तक हैं। उन्हें चाहिए कि वे अपने पक्ष में ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करें, जिससे उपभोक्ता, किसान और सामाजिक कार्यकर्ता धारणीय खाद्य उत्पादन के जैविक खेती तथा बायो कीटनाशकों जैसे वैकल्पिक साधनों के साथ जी एम तकनीक को भी गले लगाने का तैयार हो जाएं।

हिंदू में प्रकाशित राममोहन आर. तुरगा के लेख पर आधारित।

 

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