भारत में बढ़ती आय की असमानता
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भारत में आय की असमानता के मामले में स्थिति बहुत खराब है। प्रमुख अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि पूरे विश्व में सबसे अधिक आय की असमानता रखने वाले देशों में से भारत एक है। इसका अर्थ यह है कि देश के 1% अमीर लोगों और सबसे कम आय वाले 50% लोगों के बीच में जो आय की असमानता है, वह विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में सबसे अधिक है। अमेरिका, यू.के., चीन, रूस और फ्रांस की तुलना में यह सर्वाधिक है।
2014 के बाद के भारत में आय की असमानता
आर्थिक मोर्चे की मजबूती के लिए बड़े व्यवसायों और निजीकरण पर निर्भरता बढ़ाई गई। इसके परिणामस्वरूप आय की असमानता और भी बढ़ गई। विश्व में आय की असमानता की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार ‘भारत एक समृद्ध अभिजात्य वर्ग के साथ, एक गरीब और बहुत असमान देश के रूप में खड़ा है।’
स्थिर विकास दर –
भारत में काफी लंबे अरसे तक विकास दर लगभग एक समान रही है। इसका अर्थ है कि निचली 50% जनता की स्थिति वैसी की वैसी रही। अपनाई गई आर्थिक नीतियों के बावजूद, भारत की सामाजिक परिस्थितियों और बाधाओं के कारण आय में वृद्धि नहीं हो सकी। नेहरू काल और उसके बाद के वर्षों में सामाजिक लोकतांत्रिक आधार को स्थापित करने का प्रयत्न किया गया, परंतु यह कुछ राज्यों तक ही सीमित रहा।
सर्वे और डेटा क्या कहते हैं ?
2018 में 106 देशों पर किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि किसी देश में व्यक्तिगत अधिकारों के लिए सम्मान और सहिष्णुता धारण करने वाली धर्मनिरपेक्षता ही आर्थिक विकास का आधार होती है। धर्मनिरपेक्षता का केंद्रीय पहलु, धर्म को सार्वजनिक जीवन से अलग करना है।
विपरीत दिशा में बढ़ता भारत
वर्तमान सरकार की एक धर्म और एक भाषा के लोगों से निर्मित ‘एक आकार के राष्ट्र’ की ओर अग्रसर नीति के गंभीर आर्थिक परिणाम हो सकते हैं। आय की बढ़ती असमानता, इसके साक्ष्य भी प्रस्तुत कर रही है। सरकार की प्राथमिकताएं और नीतियां, सामाजिक ताने-बाने को तोड़ रही हैं।
वर्ष 1949 में बी.आर. अंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि यदि हम लंबे समय तक सामाजिक और आर्थिक असमानता से मुँह मोड़ते रहे, तो हम राजनीतिक लोकतंत्र के ढांचे को नष्ट कर देंगे। आज हम उसी खतरे को आमंत्रण दे रहे हैं।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित सीमा चिश्ती के लेख पर आधारित। 28 दिसम्बर, 2021