लैंगिक असमानता

Afeias
17 May 2021
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Date:17-05-21

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डॉ. भीमराव अम्‍बेड़कर ने कहा था कि किसी भी समाज का मूल्‍यांकन इस बात से किया जाता है कि उसमें महिलाओं के स्थिति कैसी है। इस दृष्टि से हाल ही में वैश्विक आर्थिक मंच द्वारा जारी अंतरराष्ट्रीय लैंगिक असमानता रिपोर्ट 2021 बहुत निराश करती है। जिन देशों को बेहद खराब करने वाला बताया गया है, उनमें भारत भी एक है। रिपोर्ट के अनुसार 156 देशों में भारत 140वे स्थान पर है। यह पिछले साल की तुलना में 28 स्थान कम है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत महिलाओं की स्थिति के सुधार के बारे में चाहे जितने भी दावे क्यों न करे, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। जाहिर है कि इसके लिये भारत को बहुत लगकर काम करना होगा।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने कहा है कि लैंगिक रूढि़यों को प्ले स्‍कूल के स्‍तर पर ही खत्‍म किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जब बच्‍चे बड़े हों तो वे लिंग के आधार पर पक्षपात न करें। यह भी दिशा-निर्देश दिया गया है कि शिक्षकों को ऐसी भाषा का प्रयोग करने से बचना चाहिए, जो किसी एक लिंग तक सीमित होता है।

सामाजिक स्‍तर पर लैंगिक असमानता को दूर करने के लिये अनेक देश अपने-अपने स्‍तर पर तैयार दिखाई पड़ते हैं। इंग्‍लैण्‍ड की एडवरआइज स्‍टैंडर्ड अथारिटी ने अपने यहाँ के विज्ञापनों के लिए नये कानून बनाये हैं। इसके अनुसार विज्ञापनों में महिलाओं या पुरूषों को समाज में प्रचलित मान्‍यताओं के अनुसार नहीं दिखाया जा सकता। उदाहरण के तौर पर समाज यह मानता हुआ चला आ रहा है कि महिलायें घर का काम करती हैं, भोजन बनाती हैं और बच्‍चे सम्‍हालती हैं। अथारिटी के अनुसार जब बच्‍चे इस तरह के विज्ञापनों को देखते हैं, तो वे महिलाओं और पुरूषों की भूमिका के बारे में एक परम्‍परागत सोच बना लेते हैं। इस तरह की सोच लैंगिक समानता के लिये अदृश्‍य बाधा का काम करती है।

लैंगिक असमानता रिपोर्ट में यह दिखाया गया है कि एक प्रकार से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक आदि क्षेत्रों में यह असमानता बनी हुई है। कुछ देशों ने इसे दूर करने के उपाय किये हैं। ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और बेल्जियम जैसे देश यह उदाहरण प्रस्‍तुत करते हैं कि यदि संसद में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाना है, तो उसके लिये ‘कोटा की प्रणाली’  एक जरूरी कदम होना चाहिए।

जनरल आफ इकानॉमिक्‍स एंड ऑर्गनाइजेशन में प्रकाशित एक शोध में यह सामने आया है कि सरकार में महिलाओं की ज्‍यादा भागीदारी  होने से भ्रष्‍टाचार कम होता है। 125 देशों में हुये इस शोध से पता चलता है कि जिन देशों की संसद में महिलायें ज्‍यादा हैं, वहाँ भ्रष्‍टाचार काफी कम हो गया है। साथ ही यह तो स्‍थापित सत्‍य है कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के बिना धारणीय विकास ,मानवाधिकार एवं विश्‍व शांति की कल्‍पना करना व्‍यर्थ होगा।

विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित।  

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