भारत को नाटो प्लस से दूर ही रहना चाहिए
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उत्तर अटलांटिक संधि संगठन या नाटो के ही विस्तार नाटो-प्लस में अमेरिका भारत को सदस्य बनाना चाहता है। इस पूरे ढांचे का फोकस चीन को घेरने पर है। कई कारणों से यह भारत के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है। इसे क्रमवार बिंदुओं में समझते हैं –
नाटो –
यह 32 देशों का एक ट्रान्स-अटलांटिक सैन्य गठबंधन है, जिसमें अधिकांश सदस्य यूरोप से हैं। इसका उद्देश्य सदस्य देशों को सुरक्षा प्रदान करना है। भारत इसका सदस्य नहीं है। सोवियत संघ के विघटन और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद, ऐसी आशंका थी कि नाटो अपनी ताकत खो देगा। इसके विपरीत, यह न केवल अस्तित्व में रहा है, बल्कि उसका विस्तार भी हुआ है। फिनलैंड और स्वीडन इसके नये सदस्य बने हैं। रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद अब नाटो को एक पुख्ता जमीन मिल गई है। इसे शीत युद्ध 2.0 की शुरूआत भी माना जा रहा है।
नाटो प्लस –
यह नाटो और अमेरिका के पाँच संधि सहयोगियों – आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इजराइल और दक्षिण कोरिया के बीच वैश्विक सुरक्षा, सहयोग और चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी से रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने की एक व्यवस्था है।
जहाँ नाटो का लक्ष्य रूस को नियंत्रण में रखना था, वहीं नाटो प्लस का लक्ष्य चीन को नियंत्रण में रखना है। चीन के साथ भारत के विवादास्पद संबंधों को देखते हुए भारत को इस नेटवर्क में नहीं उलझना चाहिए। इसके और भी कुछ कारण हैं –
- नाटो ढांचे में शामिल होने से रूस और चीन नाराज होंगे। रूस से भारत के मजबूत रणनीतिक संबंध रहे हैं। साझेदारी, क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने और महत्वपूर्ण रूप से चीन के रूख को नरम करने में रूस भारत के लिए उपयोगी रहा है।
नाटो प्लस में शामिल होने से रूस के साथ भारत की ठोस राजनीतिक साझेदारी टूट जाएगी। इन रिश्तों को संतुलित करना और महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक परिणामों को संतुलित करना, भारत के लिए एक चुनौती है।
- इस संगठन में शामिल होने का अर्थ है कि अपने सैन्य ढांचे को अमेरिका के अनुरूप बनाना। इससे भारत के चीन के साथ द्विपक्षीय मुद्दों पर प्रभाव पड़ेगा, और उसकी चीन के प्रति नीति की स्वायत्तता खत्म हो जाएगी। अमेरिका की हिंद-प्रशांत नीति और ताईवान के लिए रणनीतिक पहल से भारत की सुरक्षा को खतरा और बढ़ सकता है। हो सकता है कि इसका बहाना लेकर चीन भारतीय सीमा पर घुसपैठ और सैन्य गतिविधियों को बढ़ा दे।
- भारत ने अभी तक विभिन्न राष्ट्रों और गुटों से जुड़ने पर भी अपने हितों के आधार पर रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी है। नाटो ढांचे में शामिल होने के लिए भारत को अपनी सुरक्षा नीतियों को गठबंधन के उद्देश्यों और रणनीतियों के अनुकूल बनाना होगा। इससे भारत की गुटनिरपेक्ष नीति तुरंत समाप्त हो जाएगी। इससे विभिन्न देशों, विशेष रूप से ऐसे पड़ोसी और क्षेत्रीय संगठनों के साथ संबंधों में तनाव आ सकता है, जो भारत को महत्व देते हैं।
भारत की प्राथमिकताएं –
भारत की प्राथमिकताएं अपनी क्षेत्रीय गतिशीलता को संबोधित करने में निहित हैं, जिसमें सीमा विवाद, आतंकवाद और क्षेत्रीय संघर्ष जैसी सुरक्षा चुनौतियों का एक अनूठा सेट शामिल है।
भारत की बढ़ती क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर नाटो प्लस एक सुरक्षा छतरी की तरह काम कर सकता है। इस समूह से उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकियां, खुफिया-साझेदारी और अन्य सदस्य देशों के साथ इंटर – ऑपेराबिलिटी मिल सकती है। लेकिन रणनीतिक स्वायत्तता के व्यापक संदर्भ में भारत को इस प्रलोभन में नहीं आना चाहिए। फिलहाल भारत का जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ बना क्वाड समूह अधिक आशाजनक दिखाई देता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित शक्ति प्रसाद श्रीचंदन के लेख पर आधारित। 4 जुलाई, 2023