
भारत की विविधता में नागरिकता की समस्या
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भारत के सीमावर्ती राज्यों में नागरिकता संबंधी समस्याएं एक बार फिर सामने आ रही हैं। सिटीजनशिप एमेन्डमेन्ड एक्ट ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर या एनआरसी को और उलझा दिया है। अब निर्णय यह हुआ है कि 2027 की जनगणना में एनआरसी के मूल निकाय राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को शामिल नहीं किया जाएगा।
भारत में नागरिकता की पेचीदगी से जुड़े कुछ बिंदु-
विविध और परिवर्तनशील –
भारत में नागरिकता प्रमाणपत्र अनिवार्य नहीं है। नागरिकता के प्रमाण के लिए कोई एक दस्तावेज नहीं है। इसके बजाय देश की बहुलता, जातिगत नेटवर्क और विवाह संबंधों, शरणार्थियों की बढ़ती संख्या, घोर गरीबी और सरकारी संस्थानों तक पहुँच की कमी को देखते हुए, केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून को पूरी की गई शर्तों के आधार पर तय किया हैं। कई ऐसे पहचान पत्र भी हैं, जो नागरिकता को प्रमाणित कर सकते हैं।
सही पहचान कैसे हो –
असम में एनआरसी के कारण वर्षों से या पीढि़यों से यहाँ रह रहे लोगों की नागरिकता पर सवाल उठा दिए गए हैं। उन्हें देश छोड़ने का आदेश दे दिया गया है। दूसरी ओर, कथित अप्रवासियों के पास वैध दस्तावेज थे। ऐसे मामलों में न्यायालयों को कदम उठाना पड़ रहा है। न्यायालय का कहना है कि मानवाधिकार जीवन का महत्वपूर्ण अंग है, और इस पर न्यायालय को परिस्थिति के अनुसार निर्णय देना पड़ता है। केवल संदेह को नागरिकता खारिज करने का विकल्प नहीं माना जा सकता है।
बदलते दस्तावेज –
नागरिकता का संबंध चुनावों में वोट लेने से भी है। बहुत से अवैध प्रवासियों को वोट के लोभ में प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध करा दिए जाते हैं। इससे निपटने के लिए ही टेक-इंटरफेस आधार की शुरुआत की गई थी, परंतु यह नागरिकता प्रमाणपत्र के रूप में सफल नही हो सका। भारत की विविधता को देखते हुए नागरिकता के लिए कई दस्तावेजों की मान्यता ही उचित कही जा सकती है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 जून, 2025