भारत आत्म-निर्भर कैसे बनेगा ?
Date:19-01-21 To Download Click Here.
भारत में सबसे ज्यादा आयात इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों का होता आया है। इनमें से अधिकतर सामान चीन से आयात किया जाता रहा है। महामारी के चलते आपूर्ति श्रृंखला में आई बाधाओं और भारत के प्रति चीन के रणनीतिक रवैये ने केंद्र सरकार को घरेलू उद्योगों को आत्मनिर्भर बनाने की ओर सजग किया है।
अधिकांश इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों; जैसे-स्मार्टफोन, पी.सी., कार, घड़ी, द्रोण, चिकित्सा उपकरण और अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों में सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल होता है। इस प्रकार की चिप के लिए अभी तक भारत पूरी तरह से चीन और ताइवान पर निर्भर रहा है। इसके अलावा भी सामग्री की एक लंबी सूची है, जिनके लिए भारत दूसरे देशों से आयात पर निर्भर है। सवाल यह है कि ऐसा क्यों है, और इसका समाधान क्या है ?
- भारत में इलैक्ट्रानिक उपकरणों को तैयार करने के लिए पर्याप्त प्रतिभा मौजूद है। लेकिन हमारे देश की अधिकांश प्रतिभाएं इंटेल तथा सैमसंग, जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरियों पर लगी हुई हैं।
- देश में 300-400 स्टार्टअप, इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों को तैयार करने के लिए शोध-अनुसंधान में लगे हुए हैं। इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों को विकसित करने में 10-12 वर्ष का समय और बहुत सा धन लगता है। इसके लिए निवेशकों की जरूरत होती है। इन निवेशकों में फल प्राप्ति के लिए धैर्य होना बहुत आवश्यक है, जो भारतीय निवेशकों में नहीं मिलता।
- गत वर्ष सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव के माध्यम से इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों के विनिर्माण को प्रोत्साहन देने की कोशिश की थी। लेकिन इस क्षेत्र में पारिस्थितिकी निर्माण के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए। इसके कारण उद्यमों में पूंजी निवेश का वातावरण ही नहीं बन पाया है।
जिन देशों ने इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों में आत्म निर्भरता हासिल की है, वहाँ की सरकारों ने वित्तीय सहायता और स्थानीय बाजार तैयार करने में बहुत मदद की है। इस दिशा में केंद्र सरकार चाहे तो अनेक इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए घरेलू चिप्स के इस्तेमाल को अनिवार्य कर सकती है।
- सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण का प्रसार है। हमारी इंजीनियरिंग शिक्षा की आधारशिला ही कमजोर है। स्कूल स्तर से ही विद्यार्थियों की जागरूकता को विकसित किया जाना चाहिए। एक जिज्ञासु विद्यार्थी ही सफल इंजीनियर बन सकता है।
व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों के आयाम को विस्तृत किया जाना चाहिए , जिसमें समय की पाबंदी न हो।
- समाज की मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है। अधिकांश मध्यवर्गीय परिवार बच्चों के भविष्य के लिए नौकरियों में स्थिरता चाहते हैं। सामाजिक स्तर से ग्रसित मानसिकता एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी जैसे काम को गौरवशाली समझती है। इस दबाव में अनेक प्रतिभाएं एक बंधी-बंधाई नौकरी में दम तोड़ देती हैं। इससे बाहर निकलने की आवश्यकता है।
इमें जर्मन मॉडल पर आधारित एक ऐसा वातावरण तैयार करना होगा, जहाँ शोध-अनुसंधान को ही प्रधानता दी जा सके। व्यक्ति को उसकी वेशभूषा से नहीं, वरन् उसकी प्रतिभा के आधार पर आंका जा सके। जहाँ सरकार का निवेश ऐसी पारिस्थितिकी के निर्माण पर हो, जिसमें हर जिज्ञासु जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की चिंता के बिना अपना पूरा जोश और उत्साह आविष्कारों में लगा सके। ऐसी स्थितियों में ही हम आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार कर सकेंगे।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित सुजीत जॉन और शिल्पा फडनीस के लेख पर आधारित। 6 जनवरी, 2021