‘मेक इन इंडिया’ के साथ निर्माण को बढ़ावा कैसे दें?

Afeias
06 Jun 2018
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Date:06-06-18

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हाल ही में देश में दो परिवर्तन ऐसे हुए हैं, जो यह बताते हैं कि आगामी काल में भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में सबसे आगे होगा। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के अनुसार भारत ने विविध आर्थिक क्षेत्रों में अपनी पहुंच बना ली है। इसके चलते उसका वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद 7.9 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है। दूसरे, अमेरिका-चीन में छिड़े आर्थिक युद्ध का लाभ भारत निर्माण उद्योग को मिलने वाला है। इसके लिए भारत को कुछ सकारात्मक प्रयास करने होंगे।

  • जर्मनी, जापान और अमेरिका कुछ प्रमुख तकनीकों के सफल खिलाड़ी हैं। ये तकनीकें आधारभूत विज्ञान, रसायनशास्त्र, धातु, इलैक्ट्रॉनिक आदि से जुड़ी हुई हैं। इन देशों ने अपनी नीतियों और शोध-अनुसंधान में दीर्घकालीन निवेश के द्वारा तकनीकों को विकसित किया है। इन देशों द्वारा इस प्रकार की तकनीकों पर लिए गए पेटेंट की पहुँच अन्य देशों के पास नहीं है।
  • इन जटिल तकनीकों के अलावा कम जटिल तकनीकें एवं अलग-अलग क्षेत्रों; जैसे- कृषि, कच्चे माल, खनन उत्पादों, कपड़ा आदि की विशिष्ट तकनीकें ऐसी हैं, जो एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। यही कारण है कि जहाँ पूर्वी एशियाई देशों के पास कपड़ा एवं इलैक्ट्रॉनिक तकनीकों में कुशलता है, वहीं अधिकतर अफ्रीकी देशों एवं लातिन अमेरिकी देशों के पास खनन व कृषि संबंधी उत्कृष्ट तकनीकें हैं।

यहाँ भारत को यह समझने की आवश्यकता है कि निर्माण के लिए किसी एक तकनीक की विशेषज्ञता के बजाय प्रमुख क्षेत्रों के साथ-साथ कम जटिल क्षेत्रों में भी उसे अपना स्थान बनाना पड़ेगा। यदि इन्हें हम चार प्रमुख समूहों में बांट दें, तो वे इस प्रकार होंगे –

  • उद्योगों के लिए ऐसी मशीनरी का निर्माण, जो स्वचालन एवं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लैस हो। मशीनी उपकरण एवं अर्धचालक (सेमीकंडक्टर) विनिर्माण भी दो प्रमुख क्षेत्र हैं। सेमीकंडक्टर उपकरणों के माध्यम से कम्प्यूटर, मोबाइल, टेलीकॉम, कार एवं इंटरनेट से जुड़े उद्योगों पर कब्जा जमाया जा सकता है। कुछ तकनीकें आयात की जा सकती हैं। परन्तु अधिकांश तकनीकों को देश में ही विकसित किया जाना चाहिए।
  • थ्री डी प्रिंटिंग, नैनो तकनीक, यांत्रिकी उपकरण, इंटीग्रेटेड सर्किट तथा, चिकित्सकीय इमेजिंग उपकरण आदि के निर्माण के लिए दीर्घकालीन शोध एवं अनुसंधान में निवेश किया जाना चाहिए।
  • कम्प्यूटर, टी.वी., मोबाईल फोन एवं अन्य इलैक्ट्रानिक व टेलीकॉम उत्पादों का अलग समूह है, जिसके इर्द-गिर्द चीन, कोरिया और ताईवान की अर्थव्यवस्था घूमती है। वहाँ की अर्थव्यवस्थाओं में इन उत्पादों का लगभग 15 प्रतिशत योगदान है।
  • ऑटो कम्पोनेंट, खिलौने, फर्नीचर, फुटवेयर आदि ऐसे उत्पाद है, जिनका निर्माण भारत आसानी से कर सकता है। इनसे संबंद्ध उद्योग लगाना आसान होता है। इनमें करोड़ों लागों को रोजगार दिया जा सकता है।

प्रमुख उत्पादों में विशेषता हासिल करने के लिए औद्योगिक अनुसंधान में दीर्घकालीन निवेश की आवश्यकता होगी। सेक्टर विशेष से जुड़ी एकीकृत नीति अपनाई जा सकती है। विशिष्ट निर्माण क्षेत्र या समूह विकसित किए जा सकते हैं। प्रत्येक समूह के लिए एक एंकर प्रतिष्ठान बनाकर निर्माण एवं संचालन प्रारंभ किया जाना चाहिए। एंकर प्रतिष्ठानों के अधीन अनेक उद्योग तेजी से काम करें, व निर्यात बढाएं। इन सभी उपायों के साथ भारतीय निर्माण क्षेत्र को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अजय श्रीवास्तव के लेख पर आधारित।

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