वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से मेक इन इंडिया को कैसे सफल बनाया जाए।

Afeias
29 Jun 2017
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Date:29-06-17

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  • एक जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर लागू हो जाएगा। इसके अंतर्गत अधिकतर औद्योगिक उत्पादों को 18 प्रतिशत वाली कर श्रेणी में रखा गया है। वर्तमान में एक निर्माता 28-30 प्रतिशत कर देता है, जो घटकर 18 प्रतिशत हो जाएगा। वस्तु एवं सेवा कर से निर्माताओं को न केवल करों में कमी का लाभ मिलेगा, बल्कि उन्हें और भी अलग तरह के फायदे होंगे।
  • वस्तु एवं सेवा कर वर्तमान में लगाए जाने वाले सेवा कर, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले वैट एवं प्रवेश शुल्क जैसे अनेक केन्द्रीय एवं राज्य शुल्कों की जगह लेगा। इससे केन्द्रीय, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर विभिन्न अनुपालन तंत्र के अंतर्गत लगाए जाने वाले करों से मुक्ति मिल जाएगी।वस्तु एवं सेवा कर से अभी तक लगाए जाने वाले करों के प्रभाव को कम किया जा सकेगा। उदाहरण के लिए, अभी एक निर्माता 100 रुपये की एक कमीज पर 20 प्रतिशत उत्पाद शुल्क देता है। फिलहाल राज्य सरकार 120 रुपये पर वैट लेती है। वस्तु एवं सेवा कर से यह समस्या हल हो जाएगी। यह कर वस्तु के संपूर्ण मूल्य पर न लगकर केवल अतिरिक्त मूल्य पर लगेगा।
  • वस्तु एवं सेवा कर से परिवहन शुल्क एवं वितरण शुल्क में कमी आएगी। वर्तमान में अभी कंपनियाँ को उत्पाद के वितरण और गोदाम में माल रखने के लिए 5 से 8 प्रतिशत तक खर्च करना पड़ता है। फलस्वरुप कंपनियाँ टैक्स बचाने के लिए कई शाखाएं खोल लेती हैं और अलग-अलग गोदाम लेकर रखती हैं। लेकिन इससे उनकी लागत बढ़ जाती है। अब ऐसा करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और कीमतों में कमी आएगी।शुल्क में कमी, कर ढांचे के सरलीकरण, टैक्स क्रेडिट सुविधा तथा टैक्स अनुपालन तंत्र के तकनीक आधारित होने से वस्तु एवं सेवा कर ने ऐसा मंच तैयार कर दिया है, जिससे सकल घरेलू उत्पाद में निर्माण उद्योग की हिस्सेदारी 2025 तक4 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत तक हो जाएगी।
  • अब भारत को अपनी निर्माण क्षमता में असाधारण वृद्धि करनी होगी और इसी के साथ ‘‘मेक इन इंडिया’’ का स्वप्न भी पूरा हो पाएगा। इसके लिए निर्माण की चार श्रेणियों में अधिक काम करने की आवश्यकता है।
  • सबसे पहले भारत को वस्तुओं का उत्पादन करने वाली मशीनरी का निर्माण करना होगा। इसके बिना कोई भी देश शक्तिशाली निर्माता नहीं बन सकता।हमें सेमीकंडक्टर उपकरणों पर अधिक ध्यान देना होगा। कम्प्यूटर, मोबाइल, टेलीकॉम, ऑटोमोबाइल और इंटरनेट से संबंधित आयात की जाने वाली वस्तुओं में यही सेमीकंडक्टर उपकरण सबसे अधिक होते है। इन उत्पादों के निर्माण के लिए लाइसेंस लिया जा सकता है या तकनीक को सीधे खरीदा जा सकता है। फिर भी औद्योगिक क्षेत्र में हमें शोध एवं अनुसंधान का भी सहयोग लेना होगा।
  • विशिष्टता वाले उत्पाद; जैसे नैनोटेक्नॉलॉजी, सूक्ष्म मैकेनिकल उपकरण, इंटीग्रेटेड सर्किट आदि के निर्माण के लिए सुविधाएं देनी होंगी। इन सबके लिए पहले से चल रहे शोध एवं अनुसंधान एवं नए अवसरों में निवेश को बढ़ावा देकर अधिक से अधिक विशेषज्ञों को इसमें लगाना होगा। इस मामले में कोरिया एक अच्छा उदाहरण हो सकता है। वहाँ की सरकार ने शोध एवं अनुसंधान में निवेश पर भारी सब्सिडी देकर इसे बहुत बढ़ावा दिया है। नतीजतन एक छोटे से विकासशील देश ने हाई-टेक निर्माण उद्योग के क्षेत्र में विश्व में अपनी पहचान बना ली है।
  • कम्प्यूटर, मोबाइल, टी वी जैसे इलैक्ट्रॉनिक एवं टेलीकॉम के उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा देना होगा। इस क्षेत्र ने चीन को विश्व में असाधारण बना दिया है। 1990 के मध्य से चीन ने इलैक्ट्रॉनिक और टेलीकॉम के ऐसे पुरजों के निर्माण पर ध्यान दिया, जिन्हें दूसरे देश बहुतायत में खरीदते हों। 15 वर्षों से भी कम समय में चीन ऐसी मशीनरी का मुख्य निर्यातक देश बन गया। भारत भी ऐसी वस्तुओं का बड़ी संख्या में आयात करता है।उत्पाद बनाने में विशेषज्ञता और अधिक से अधिक श्रमिकों को अवसर देने वाले खिलौना उद्योग, फर्नीचर, कपड़े, जूता, गद्दे, ताले जैसे हल्के-फुल्के इंजीनियरिंग उद्योगों को व्यापक स्तर पर निर्माण की सुविधा मिलनी चाहिए।
  • भारत को जल्द से जल्द अधिक फैक्टरी लगाने की दिशा में बढ़ जाना चाहिए। इन्हें लगाना आसान है और इनसे लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है। कृषि या असंगठित क्षेत्रों के लोग इस माध्यम से संगठित क्षेत्र में आ सकेंगे।वस्तु एवं सेवा कर से भारत की उत्पादक क्षमता बढ़ेगी और कीमतों में कमी आएगी। इसके साथ ही निर्माण उद्योग का संयोजन करके हम विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकेंगे। रोजगार बढ़ा सकेंगे और कुछ ही वर्षों में ‘‘मेक इन इंडिया’’ के तहत भारत को निर्माता के रूप में प्रतिष्ठित कर सकेंगे।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित अजय श्रीवास्तव के लेख पर आधारित।

 

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