भारत की ऊर्जा-परिवर्तन गति धीमी है

Afeias
22 Dec 2023
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हाल ही में सीओपी 28 की बैठक संपन्न हुई है। भारत ने इसमें दुनिया की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 2030 तक कम से कम तीन गुना या 11,000 गीगावॉट करने वाली प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर नहीं किया है। इसके पीछे कुछ कारण हैं –

  • भारत के हस्ताक्षर नहीं करने का मतलब यह नहीं है कि वह नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का विरोधी है।
  • भारत में ऊर्जा की वार्षिक की दर से बढ़ रही मांग 8% है।
  • यह मांग अभी तक मुख्य रूप से कोयले से पूरी की जाती है। अतः कोयला इकाइयों को एकदम से बंद कर देना संभव नहीं है।
  • भारत अपने ऊर्जा परिवर्तन को स्वयं ही फाइनेंस करता रहा है। वित्त वर्ष 2020 में, स्वच्छ ऊर्जा, परिवहन और ऊर्जा क्षमता के लिए ग्रीन फाइनेंस का 83% भारत ने स्वयं ही वहन किया था। फिलहाल भारत में नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन 132 गीगावॉट है, जिसे 2030 तक 450 गीगावॉट किया जाना है। भारत में ऊर्जा निर्भरता 43% गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित है, जिसे 2030 तक 50% किए जाने का लक्ष्य है।
  • बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए नई क्षमताएं बढ़ाने की जरूरत है। लेकिन भारत की सीमित राजकोषीय स्थिति का मतलब है कि वह ऊर्जा के सबसे सस्ते विकल्प पर भरोसा जारी रखना चाहेगा।

नवीकरणीय ऊर्जा के भंडारण की लागत कोयले की तुलना में कम है। लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा प्लांट लगाने की लागत बहुत ज्यादा है। भारत के इरादे पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता है। भारत दुनिया के सामने अपनी राजकोषीय समस्या का हवाला दे सकता है। इससे विश्व फोरम को यह स्पष्ट हो सकेगा कि बिना वित्तीय सहायता के भारत की ऊर्जा-संक्रमण की गति धीमी रहेगी।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकशित संपादकीय पर आधारित। 4 दिसंबर 2023