भारत-नेपाल संबंधों की चुनौती
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भारत के लिए नेपाल का रणनीतिक महत्व है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध भी बहुत मजबूत रहे हैं। मुक्त सीमाओं और नेपाली नागरिकों को भारत में रहने और काम करने की अनुमति देने से व्यापार और आर्थिक संबंध दृढ़ रहे हैं। हाल के कुछ वर्षों में कुछ गलतफहमियों और संदेहों के चलते इन संबंधों में खटास अनुभव की जा रही है। कुछ बिंदु-
- नेपाल में वर्तमान में बनी साम्यवादी सरकार चीन समर्थक है। यह एक चुनौती है।
- एक धारणा है कि भारत केवल कुछ नेपाली राजनेताओं और दलों का समर्थन करता है। इसमें नेपाल के मधेशी आंदोलन को भी जोड़ा जाता है। यह संदेह उन हितों के विरूद्ध हैं, जिनसे दोनों देशों के संबंध मजबूत होते हैं।
- नेपाल में चीन के बढ़ते दखल भी एक कारण है। इससे निपटने के लिए भारत को चाहिए कि वह नेपाल के सभी राजनैतिक दलों से अपने विश्वास और हितों के संबंधों की मजबूती दिखाए।
- नेपाल की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि उसे बुनियादी ढांचों में निवेश के लिए चीन और भारत, दोनों देशों से ही मदद लेनी पड़ती है। भारत के लिए यह चुनौती है कि वह चीन की तुलना में अपनी परियोजनाओं की श्रेष्ठता प्रमाणित करे। भारत की कई परियोजनाओं को स्थानीय पर्यावरणीय आपत्तियों, लागत में वृद्धि और स्थानीय ठेकेदारों के ढीलेपन से हुई देरी के कारण अस्वीकृत किया जा चुका है। भारत को इन्हें ठीक करने के लिए आगे आना चाहिए।
हाल ही में चल रही अरूण-थ्री हाइड्रो इलेक्ट्रिक योजना को समय से पूरा करने की चुनौती बनी हुई है। भारत को चाहिए कि वह कालापानी जैसे विवादों को टालने का प्रयत्न करे, और नेपाल में अपने राजनैतिक सामंजस्य को बनाकर चलता रहे।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 3 जनवरी 2023
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