न्यूनतम आय से निर्वाह-मजदूरी की ओर

Afeias
23 Jan 2023
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केंद्रीय सलाहकाल परिषद् ने उचित मजदूरी की पहचान करने के लिए एक त्रिपक्षीय समिति नियुक्त की थी। इसने मजदूरी को तीन व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया। (1) मूल न्यूनतम मजदूरी (2) उचित मजूदरी और (3) निर्वाह या जीवनयापन योग्य मजदूरी। हमारा श्रम मंत्रालय गरीबी उन्मूलन की दिशा में तेजी से काम करते हुए मजदूरी को न्यूनतम से निर्वाह योग्य की ओर ले जाने का प्रयत्न कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 2022 के पूर्वाद्ध में मजदूरी की दर 0.9% गिर गई है। इसको देखते हुए महामारी पश्चात् संभावित क्षतिपूर्ति की संभावना बहुत कम रह गई है। यह गिरावट क्रय-शक्ति में आई कमी को बताती है।

कुछ तथ्य –

  • भारत अगर मजदूरी के भुगतान को न्यूनतम से निर्वाह योग्य पर ले जाने में सफल होता है, तो धारणीय विकास लक्ष्यों की दिशा में यह बढ़ता कदम होगा।
  • पूरा विश्व मंदी की चपेट में है। बढ़ती मुद्रास्फीति से कम मजदूरी वाले श्रमिकों पर मार बहुत ज्यादा पड़ती है। अतः निर्वाह मजदूरी की शुरूआत से एक श्रमिक को अपने और अपने परिवार के लिए भोजन, कपड़े और आश्रय की बुनियादी आवश्यकता के साथ-साथ मितव्ययी आराम भी मिल सकता है।

सीमाएँ –

इस तरह की मजदूरी के निर्धारण में राष्ट्रीय आय और संबंधित उद्योग की भुगतान-क्षमता को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह अपने में सब्सिडी के कुछ अंश को समाहित करके चलती है। इसलिए यह जनकल्याण योजनाओं को सीमित कर सकती है।

ऐसा लगता है कि व्यापार चक्र में गति लाने के लिए एक गतिशील पारिश्रमिक व्यवस्था को अपनाना हितकर हो सकता है। अगर निर्वाह मजदूरी को ही अपनाया जाना है, तो इसे सामूहिक परामर्श और श्रमिकों के लिए कानूनी सुरक्षा के साथ अमल में लाया जाना चाहिए।

अंततः जीवन निर्वाह की लागत करने वाली मजदूरी से शहरी गरीबी को कम करने में सफलता जरूर मिल सकती है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 दिसम्बर, 2022

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