बढ़ती जनसंख्या के साथ जनसांख्यिकी लाभांश को भुनाने की चुनौती

Afeias
07 Dec 2022
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अगले वर्ष तक भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनने का अनुमान है। इस मायने में यह चीन को पीछे छोड़ देगा। पिछले छह दशकों में दुनिया की जनसंख्या दोगुने से अधिक हो गई है। यह एक ऐसा चरण है, जब अधिकांश विकासशील देशों में जनसंख्या के विस्तार पर अंकुश लगाना एक प्राथमिकता बन गई है। परिणामतः प्रजनन दर में गिरावट और वृद्ध होती जनसंख्या, इस सदी की प्रमुख जनसांख्यिकीय प्रवृत्ति होगी। भारत में भी 2020 के नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण में प्रजनन में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। यह 2 पर आ गई।

अन्य चुनौतियां क्या हैं ?

  • सरकार के लिए प्रमुख चुनौती जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने की है। मृत्यु और प्रजनन दर कम होने से जनसंख्या की आयु संरचना में परिवर्तन के कारण यह आर्थिक विकास की गति को संदर्भित करता है। यह गति 15-64 वर्ष की आयु की कामकाजी जनसंख्या से ही मिलती है।
  • यदि विश्व स्तर पर देखें, तो 2012 में कामकाजी उम्र की जनसंख्या 66% थी। नमूना सर्वेक्षण 2020 में भारत की कामकाजी उम्र की जनसंख्या 70% थी। यह एक अच्छा अवसर है, जब भारत 29 की औसत आयु की अधिकतम जनसंख्या का लाभ उठा सकता है।

गिरती प्रजनन दर के साथ भविष्य में हमें बुजुर्ग जनसंख्या की देखभाल की चुनौतियों से लड़ना होगा। लेकिन दुर्भाग्यवश अपने एशियाई समकक्षों की तुलना में हम युवा आबादी का आर्थिक लाभ नहीं उठा पा रहे हैं, क्योंकि हमारी नीतियां सही नहीं है।

  • 2021 में वैश्विक श्रमबल औसतन 59% था, लेकिन भारत में यह 46% था।
  • कामकाजी महिलाओं का वैश्विक औसत 46% था, लेकिन भारत का 19% था।

अतः जब तक भारत के कामकाजी क्षेत्र में महिलाओं का योगदान नहीं बढ़ता, मानव पूंजी की गुणवत्ता में सुधार नहीं होता है, तब तक हम विकास के पथ पर तेजी से आगे नहीं बढ़ सकेंगे।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 नवंबर, 2022