बाल यौन शोषण कानून में विस्तार की आवश्यकता

Afeias
17 Jun 2021
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Date:17-06-21

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वर्ष 2018 में पूर्णिमा गोविंदाराजुलु ने बचपन में हुए अपने यौन शोषण को लेकर 40 वर्ष वाद शिकायत दर्ज कराने का असफल प्रयत्न किया था। पुलिस से सहयोग न मिलने के बाद पीड़िता ने एक ऑनलाइन अभियान चलाया, जिसे लोगों का व्यापक समर्थन मिला। परिणामत; बाल एवं महिला विकास मंत्रालय की सिफारिश पर कानून एवं न्याय मंत्री ने मामले को संज्ञान में लेते हुए पोक्सो अधिनियम या प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सैक्सुअल एब्यूस (पी ओ सी एस ओ) अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दर्ज कराने के लिए समय सीमा को खत्म कर दिया।

पहले नियम क्या था ?

इससे पूर्व आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत न्यायिक मजिस्ट्रेट को एक निश्चित अवधि के परे मामले लेने पर रोक थी। धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार से परे बच्चों के साथ हुए यौन शोषण और दंड संहिता की धारा 354 के अंतर्गत किसी महिला की मर्यादा को भंग करने के मामले की शिकायत तीन वर्षों के भीतर ही दर्ज कराने की समय सीमा थी।

वर्तमान कानून की सीमाएं –

न्याय मंत्री ने पोक्सो अधिनियम के अंतर्गत मामले दर्ज कराने की समय सीमा तो खत्म कर दी, लेकिन 2012 में इस कानून के बनने से पहले के मामलों के लिए समयावधि का कोई विस्तार नहीं किया है।

विलंबित अभियोजन को रोकने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता में दिए गए प्रावधानों में से बाल यौन शोषण को अलग रखा जाना चाहिए। इसके पीछे पीड़ित बच्चों के डर और द्वंद के मानसिक उहापोह को समझा जाना जरूरी है।

कानून के दृष्टिकोण से देखा जाए, तो देर से की जाने वाली किसी भी शिकायत में साक्ष्यों का अभाव आड़े आता है। अक्सर देखा गया है कि विलंबित अभियोजन में शारीरिक और चिकित्सकीय स्तर पर 5% प्रमाण ही मिल पाते हैं, जो मामले को आगे ले जाने के लिए पर्याप्त नहीं होते।

उम्मीद की जा सकती है कि ब्रिटेन ने जैसे सैक्सुअल ऑफेन्स एक्ट ऑफ 2003 बनाकर बाल यौन शोषण के मामलों में एक विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करके पुलिस के लिए एक मार्ग बनाया है, उसी प्रकार  भारत में भी इस हेतु स्पष्ट और विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जा सकेंगे।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित मनुराज शुनमुगसुंदरम के लेख पर आधारित। 25 मई, 2021