आसियान देशों से कैसे संबंध रखे भारत
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भारत की एक्ट-ईस्ट नीति इसके हिंद-प्रशांत विजन का एक मुख्य तत्व है। आसियान के साथ भारत के संबंधों की 30वीं वर्षगांठ पर हाल ही में आसियान के विदेश मंत्रियों के एसोसिएशन की बैठक हुई है। इसमें भारत की सक्रियता और भागीदारी से जुड़े मुख्य बिंदु निम्न हैं –
- आसियान देश एक ओर तो अमेरिका और चीन जैसी महाशक्तियों के बीच शक्ति संतुलन बनाने के प्रयास में हैं, तो दूसरी ओर हिंद-प्रशांत में समान हितों वाले सशक्त साझेदारों से जुडना चाहते हैं।
- भू-राजनीतिक क्षेत्र में संबंधों को मजबूत करने से भारत को आसियान देशों से आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाने का अवसर मिला है। आसियान अब भारत का चौथा सबसे बड़ा भागीदार है। भारत का आसियान के 13 देशों के साथ पहले से ही मुक्त व्यापार समझौता या एफटीए है, जिसमें सामान, सेवाएं और निवेश शामिल हैं। भारत को अब व्यापार और निवेश के लिए इन देशों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना होगा। इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि वह इस क्षेत्र का एक बड़ा आर्थिक हिस्सेदार है।
- इंडो-पैसिफिक फ्रेमवर्क या आईपीईएफ अमेरिका द्वारा शुरू की गयी एक ऐसी पहल है, जो इस क्षेत्र को वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन बनाना चाहती है। कंबोडिया, लाओस और म्यांमार को छोड़कर अन्य दक्षिण पूर्वी एशियाई देश इसका हिस्सा हैं। चूंकि भारत क्वाड और आसियान दोनों समूहों से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसके लिए एक अवसर है, जब वह चीन के प्रभुत्व वाली आपूर्ति श्रृंखला से अलग एक स्थायी और विविध आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क की अगुवाई कर सके।
आईपीईएफ की सफलता में तब तक आशंका रहेगी, जब तक इसके सदस्य देशों को बाजार उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। इसलिए भारत का द्विपक्षीय आधार पर आसियान और सदस्य देशों से व्यक्तिगत रूप से अपने जुड़ाव को जारी रखना ही अच्छा होगा।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित हर्ष वी. पंत और प्रमेशा शाह के लेख पर आधारित। 21 जून, 2022
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