भारत-अफ्रीका संबंध

Afeias
22 Jun 2016
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22-June-16Date: 22-06-16

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नाइजीरिया के एक स्टूडेन्ट की दिल्ली में की गई हत्या ने भारत एवं अफ्रीकी देशों के संबंधों के बीच में एक खटास पैदा कर दी है।

अफ्रीकी देशों के समूह ने एकजूट होकर भारत से इसके प्रति अपना तीव्र आक्रोश व्यक्त किया है। भारत ने भी इस स्थिति को संभालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अंततः स्थिति काफी कुछ ठीक हुई।

वस्तुतः भारत किसी भी स्थिति में अफ्रीकी राष्ट्रों की अनदेखी नहीं कर सकता। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला ऐतिहासिक-सांस्कृतिक तथा दूसरा मुख्यतः आर्थिक।

 

महत्वपूर्ण तथ्य – (अ)

  • महात्मा गांधी ने अपने जीवन के 21 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में बिताये थे। यहीं उन्होंने अपने सत्याग्रह के प्रयोग किये थे।
    बाद में दक्षिण अफ्रीका को ब्रिटेन के आधिपत्य से सन् 1996 में मुक्त कराने वाले नेता नेल्सन मंडेला ने वहाँ गांधीवादी विचारों को मूर्त रूप दिया।
  • स्वतंत्रता के बाद भारत ने हमेशा उन सभी अफ्रीकी राष्ट्रों के स्वतंत्रता आंदोलन को खुला समर्थन दिया, जो उपनिवेशवादी शक्तियों के विरूद्ध संघर्ष कर रहे थे।
  • सन् 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना के बाद अफ्रीकी राष्ट्र प्रमुखता से साथ उसके सदस्य बने। ज्ञातव्य है कि भारत इस आंदोलन के न केवल संस्थापकों में से ही है, बल्कि लम्बे समय तक इसका नेतृत्वकर्ता भी रहा।
  • अक्टूबर 2015 में नई दिल्ली में आयोजित भारतीय-अफ्रीका फोरम सम्मेलन में चालीस अफ्रीकी देशों का भाग लेना दोनों देशों के बीच के संबंधों की घनिष्ठता एवं महत्व को दर्शाता है। इसमें दोनों पक्षों ने सभी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

महत्वपूर्ण तथ्य – (ब)

  • अफ्रीका में विश्व की एक तिहाई आबादी रहती है, जिसमें अधिकांशतः युवा हैं।
  • अफ्रीका महाद्वीप खनिज सम्पदा, भूमि तथा मानवशक्ति की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है।
  • भारत अफ्रीकी देशों के आधारभूत ढाँचे का विकास करने तथा शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्तीय सुविधायें, कृषि एवं डिजिटल सुविधाओं के लिए सबसे अच्छा भागीदार हो सकता है। इससे दोनों देशों को लाभ होगा।
  • अफ्रीका आज विश्व की सातवीं सबसे तेज गति से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था है।
  • भारतीय मूल के बहुत लोग पूरे अफ्रीका महाद्वीप में फैले हुए हैं, जो दोनों देशों के संबंधों को घनिष्ठ बनाते हैं।
  • भारत ने अफ्रीकी देशों की परियोजनाओं के लिए रियायती ब्याज दर पर एक हजार करोड़ अमरीकी डालर अनुदान के रूप में दिये हैं।
  • कई भारतीय कम्पनियां अफ्रीकी देशों में काम कर रही हैं
  • अफ्रीका के विद्यार्थी बड़ी संख्या में शिक्षा के लिए भारत आते हैं। इससे भारत को काफी विदेशी मुद्रा मिलती है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत को अफ्रीकी राष्ट्रों के समर्थन की आवश्यकता है। ऐसी आवश्यकता उसे अन्य वैश्विक मामलों में भी होगी।

दुर्भाग्य से अफ्रीकी देशों से अपने संबंधों को बढ़ाने के लिए चीन जिस तेजी के साथ अग्रसर है, भारत नहीं। उसे इस ओर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि अफ्रीकी राष्ट्र चीन की बजाय भारत से जुड़ना अधिक पसंद करेंगे। इसके लिए भारत को चाहिए कि वह पारस्परिक संबंधों संबंधी अपने नियमों-कानूनों को और सरल बनाये तथा कड़े टैक्स नियमों में ढिलाई दे।

 

(‘दि टाइम्स आफ इंडिया’ के एक लेख तथा ‘दि इकोनामिक टाइम्स’ के सम्पादकीय टिप्पणी पर आधारित)

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