वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल

Afeias
23 Jun 2016
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23-June-16

Date: 23-06-16

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भारत में फिलहाल 8 करोड़ 76 लाख नागरिक 60 वर्ष से ऊपर की आयु के हैं।

सन् 2050 तक इनकी संख्या 30,00,00,000 (तीस करोड़) हो जाने का अनुमान है। संयुक्त परिवारों की घटती संख्या, बिगड़ी हुई स्वास्थ्य सेवाओं, वरिष्ठ नागरिकों के लिए सम्मानजनक व्यवहार की कमी, परिवहन सुविधाओं की कमी, अपर्याप्त आवासीय सुविधाएँ आदि कुछ ऐसी समस्याएँ हैं, जिन पर अभी से सक्रिय नीति बनाने की जरूरत है।

देश में 50 प्रतिशत से अधिक वृद्ध आज भी आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर हैं। आने वाले समय में स्वास्थ्य सेवाओं, उम्र के साथ बढ़ने वाली मनोवैज्ञानिक और सामाजिक असुरक्षा की वजह से वृद्धों की परेशानियाँ और भी बढ़ने वाली हैं।

 

सरकारी कदम

  • सन् 2007 में वरिष्ठ नागरिक एवं अभिभावक कल्याण एवं रखरखाव एक्ट पारित करते समय सरकार ने उनको आने वाली विभिन्न परेशानियों को ध्यान में रखा था। इस एक्ट के तहत वरिष्ठ नागरिकों और अभिभावकों के रिश्तेदारों या बच्चों को उन्हें रखरखाव का खर्च देना अनिवार्य कर दिया गया। इसमें राज्य सरकारों को वृद्धाश्रम बनाने के लिए भी कहा गया।

 

समस्या ज्यों की त्यों

सरकार का यह एक्ट व्यक्तिगत मानसिकता को नहीं बदल सकता। अगर बच्चे अपने माता-पिता को बदतर हालत में जीने को मजबूर करें, तो भी माता-पिता न्यायालय जाने की बजाय बदहाली में रहना मंजूर कर लेते हैं। समस्याएँ और भी हैं। वृद्धों में अपने अधिकारों की समझ का अभाव एवं अनेक राज्य सरकारों द्वारा 2007 एक्ट के तहत उचित कार्यवाही न करना भी वरिष्ठ नागरिकों की बढ़ती बदहाली का कारण है।

वृद्धों के लिए एकीकृत कार्यक्रम इंटीग्रेटेड प्रोग्राम फॉर ओल्डर पर्सन के अंतर्गत केन्द्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे वृद्धाश्रम, जो 2012-13 में 269 थे, वर्ष 2014-15 में 137 रह गए हैं। सरकार ने राज्य सरकारों से वृद्धाश्रमों के उचित कार्यान्वयन के लिए अपील की है, चूंकि राज्य सरकारों के लिए इसका पालन करना अनिवार्य नहीं है। अतः इसमें बहुत ढील दी जा रही है।
समाधान

  • वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य, आवास और गरिमा; इन तीन स्तरों पर कदम ऊपर उठाए जाने की जरूरत है।
  • वृद्धों से संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार सबसे बड़ी जरूरत है।
  • एकल परिवारों की संख्या बढ़ने से घर पर देखभाल के लिए साधन एवं व्यक्ति उपलब्ध कराने वालों ने एक छोटे-मोटे व्यवसाय का रूप ले लिया है। इस उद्योग को पर्याप्त नियम व कानून के दायरे में लाने की जरूरत है। इससे वृद्धों को विश्वसनीय एवं कुशल कर्मियों के द्वारा घर पर पारिवारिक एवं उचित मनोवैज्ञानिक माहौल में रखा जा सकेगा।
  • वृद्धाश्रमों के निर्माण में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी की आवश्यकता है। निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियां इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, परन्तु इनके आवासों की कीमत आम आदमी की पहुँच से बाहर है।
  • अनेक व्यवसाय ऐसे हैं, जहाँ सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिकों के अनुभवों एवं कौशल का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार काम के घंटे दिए जाएं। इससे वृद्धों की आर्थिक स्वतंत्रता एवं उनमें सार्थकता की भावना बनी रहेगी।
  • उम्र से जुड़ी हुई बीमारियों के बारे में वृद्धजनों एवं परिवार वालों को पर्याप्त जानकारी मिलनी चाहिए।

सरकार इस क्षेत्र में काम कर रही है। उम्मीद है कि आने वाले समय में वृद्धजनों के जीवन की गुणवत्ता को ठीक रखने के लिए और भी ठोस नीतियाँ बनाई जाएंगी।

द हिन्दु’ में बरखा देव के लेख पर आधारित

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