अर्थशास्त्र में मानव स्वभाव की भूमिका बताने वाले नोबेल विजेता
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नाजी कब्जे वाले पेरिस में एक युवा यहूदी लड़का 6 बजे से लगने वाले कार्फ्यू से बचता हुआ घर की और भाग रहा था। ऐसे में नाजी सिपाहियों की काली वर्दी पहने एक जर्मन उसके पास आया। अपने बटुए में से उसने एक बच्चे की तस्वीर दिखाई और उस लड़के को कुछ पैसे देकर घर भेज दिया। 2002 के अर्थशास्त्र नोबेल विजेता डैनियल काहनमैन ने इस घटना से निष्कर्ष निकाला कि लोग “अंतहीन रूप से जटिल और दिलचस्प” होते हैं। इसी ने उनके आर्थिक सिद्धांत को प्रभावित किया।
वैसे तो अर्थशास्त्र के अपने सैद्धांतिक ढांचे का निर्माण उन भावशून्य मनुष्यों के इर्द-गिर्द हुआ है, जिन्होंने अपने-अपने तर्कसंगत विकल्प बनाए। काह्नमैन और उनके सहयोगी अमोस टवेस्की ने इस ढांचे को यथार्थवाद से जोड़ा। काह्नमैन के मुख्य विचार अनिश्चितताओं की दुनिया में निर्णय लेने के इर्द-गिर्द घूमते हैं। उन्होंने उन सहज निर्णयों के महत्व पर जोर दिया, जो धारणाओं और तर्क के बीच का मध्य बिंदु होते हैं। और हमारे ये सहज या इंट्यूटीव निर्णय हमारी उन मानसिक स्थिति में जन्म लेते हैं, जब हम सहज होते हैं। वित्तीय बाजारों में ऐसी मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि बार-बार दिखाई देती है। यही दृष्टि हमें बताती है कि प्रत्येक एसेट बबल के अंत में हम गलतियाँ दोहराते ही हैं।
काहनमैन का जो भी काम है, वह प्रकृति में निर्णयात्मक नहीं है। उन्होंने यह देखा कि उद्यमियों का “भ्र्मपूर्ण आशावाद” ही पूंजीवाद की प्रेरक शक्तियों में से एक है। उनका सबसे महत्वपूर्ण सबक यह रहा कि अर्थशास्त्र मानव व्यवहार के बारे में है। और मानव व्यवहार अप्रत्याशित और उलझा हुआ होता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 मार्च, 2024