अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारती सरकार
Date:03-06-21 To Download Click Here.
कुछ समय पूर्व इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल ने केयर्न एनर्जी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि भारत सरकार द्वारा कंपनी से की गई कर की मांग जायज नहीं है। ज्ञातव्य हो कि भारत सरकार ने इस ब्रिटिश तेल कंपनी की पूंजीगत आय पर 10,247 करोड़ रु. कर की मांग की थी। इस मामले से भारत सरकार के निजीकरण के लिए किए जाने वाले प्रयासों पर बुरा असर पड़ना स्वाभाविक है। इससे पहले भी भारत सरकार ने वोडाफोन से 3 अरब डॉलर कर अदायगी की मांग रखी थी।
भारत सरकार ने 2012 के बजट में रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स या पूर्वव्यापी कर लागू किया था। इसके तहत 1962 के बाद यदि किसी कंपनी की संपत्ति भारत में है, तो किसी भी मर्जर एण्ड एक्वीजीशन पर टैक्स देना अनिवार्य कर दिया गया था। वोडाफोन मामले में सरकार को इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल से पहले ही हार का सामना करना पड़ चुका है।
भारत के लिए सबसे बुरी बात यह है कि सरकार ने केयर्न इंडिया का टैक्स रिफंड रोक रखा है। इसके साथ ही डिविडेंड जब्त कर लिया है, और बकाया टैक्स के भुगतान के लिए कुछ शेयरों की बिक्री की है। ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद सरकार को यह रकम ब्याज सहित चुकानी होगी। लेकिन भारत सरकार ने ऐसा न करते हुए ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील की है। इसके जवाब में केयर्न एनर्जी ने एयर इंडिया और भारत के सार्वजनिक बैंकों की विदेशों में स्थित संपत्ति और नकद को जब्त करने की चेतावनी दी है।
महामारी की दूसरी लहर की विकरालता से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि वैसे ही धूमिल पड़ चुकी है। उस पर वोडाफोन मामले से सबक न लेते हुए केयर्न इंडिया से उलझना और इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल के निर्णय का सम्मान न करने ने भारत के भविष्य के लिए गंभीर चिंता उत्पन्न कर दी गई है।
भारत सरकार को चाहिए कि वह विवाद से विश्वास योजना की राह पर चलते हुए देश में एक निवेश आधारित व्यापारिक वातावरण तैयार करती रहे, जिसकी भारत को बहुत जरूरत है। चाहे तो इसके लिए एक बेहतर व्यवस्था स्थापित की जा सकती है, जो सीमापार से होने वाले विवादों का कोर्ट के बाहर ही सद्भावनापूर्ण समाधान कर सके। व्यापार में सुगमता मुहिम को तभी बढ़ावा दिया जा सकेगा, जब मध्यस्थता और सुलह में भी ईज़ ऑफ डुईंग पहल की जा सके।
विभिन्न स्रोतों पर आधारित। 18 मई, 2021