अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह से जुड़ी विकास परियोजनाओं का खतरा

Afeias
17 Feb 2023
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हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय ने ग्रेट निकोबार में 72,000 करोड़ रुपये की योजना के लिए यहाँ की 130.75 वर्ग किमीण् वनभूमि के उपयोग की स्वीकृति दे दी है। इस योजना में एक ट्रांसशिपमेन्ट पोर्ट, एयरपोर्ट, बिजली संयंत्र और ग्रीनफील्ड टाउनशिप बनाई जानी है। द्वीप की संवेदनशील पारिस्थितिकी और शौम्पेन जैसी कई शिकारी मूल जनजातियों के लिए यह विनाशकारी हो सकता है। कुछ बिंदु –

  • अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, कुछ समय से सरकार के विकास रेडार पर है।
  • जनवरी 2021 में ग्रेट निकोबार के द्वीपीय तटीय विनियमन क्षेत्र को कम कर दिया गया था। इसके बाद, केंद्र शासित प्रशासन ने द्वीप के गैलाथिया खाड़ी अभयारण्य के 11.44 वर्ग किमी. क्षेत्र को डी-नोटीफाई कर दिया।
  • इसके बाद कमेटी की विशेष बैठक में लिटिल अंडमान पर ओंगे आदिवासी रिजर्व को डी-नोटीफाई कर दिया गया है।

अंडमान में भारत के कुछ सबसे बड़े मैंग्रोव हैं। तितलियों की आधी से अधिक, 40% पक्षी और 60% स्तनधारी जीवों की यहाँ पाई जाने वाली प्रजातियां स्थानिक हैं। आधुनिक परियोजनाओं के कारण ये हमेशा के लिए विलुप्त हो सकती हैं। यहाँ के स्थानीय समुदायों की अपने सामाजिक-आर्थिक बाधाएं हैं। 2019 में नीति आयोग ने इन द्वीपों के रणनीतिक महत्व को रेखांकित किया था। इनसे जुड़े समुद्री मार्गों के महत्व को समझते हुए भी, पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता की अवहेलना नहीं की जा सकती है।

अतः इस द्वीप-समूह को विकसित करने की किसी भी योजना के लिए क्षेत्र पर पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 25 जनवरी, 2023