अलग-अलग पर्यावरणीय मानक क्यों?

Afeias
22 Aug 2025
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पर्यावरण मंत्रालय ने हाल ही में भारत के अधिकाशं कोयला आधारित संयंत्रों को फ्लू गैस डिसल्फराइलेशन (एफजीडी) सिस्टम लगाने से छूट दे दी है।

  • इस सिस्टम को सल्फर डाइ ऑक्साइड (एसओटू) उत्सर्जन में कमी लाने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • 2015 में कोयला-आधारित सभी 180 संयंत्रों को ये सिस्टम लगाना अनिवार्य किया गया था। 2017 तक इन्हें सभी 600 इकाइयों में लगा दिया जाना था, लेकिन केवल 8% इकाइयों ने ही इसे अपनाया है।
  • यह जानना जरूरी है कि सल्फर डाइ ऑक्साइड एक अत्यंत हानिकारक गैस होती है। एक डिग्री से अधिक तापमान पर इसका संपर्क हानिकारक हो सकता है। इसलिए इसकी निगरानी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करता है।
  • एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति का कहना है कि भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा कम है। अतः डिसल्फराइजेशन सिस्टम लगाने से सल्फेट्स घटेंगे और तापमान में तेजी से वृद्धि हो सकती है। इससे भारत के जलवायु लक्ष्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पडे़गा।
  • दूसरा पक्ष यह है कि दिल्ली-एनसीआर के आसपास या दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के निकट कोयला संयंत्रों को 2028 तक यही सिस्टम लगा ही लेना चाहिए, क्योंकि इन स्थानों पर प्रदूषण बहुत रहता है।

कुल मिलाकर, भारत में कोयला संयंत्रों की लोकेशन या स्थान एफजीडी को लगाने का आधार बन रहा है, न कि एफजीडी की प्रभावशीलता और सल्फर गैस से होने वाली स्वास्थ्य हानि। अतः इस नीति के कार्यान्वयन से पहले इसकी लाभ-हानि पर सार्वजनिक चर्चा की जानी चाहिए।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 14 जुलाई, 2025