स्वास्थ्य योजनाओं को सुनियोजित आकार दें

Afeias
26 Mar 2018
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Date:26-03-18

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बजट में प्रस्तुत की गई राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत 10 करोड़ गरीब परिवारों को माध्यमिक एवं तृतीयक दर्जे की स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की बहुत चर्चा की जा रही है। इसी के अंतर्गत ”आयुष्मान भारत” एक ऐसी योजना है, जो कम महत्वपूर्ण नहीं है। इसमें डेढ़ लाख स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित करने की योजना प्रस्तावित की गई है।

सरकार की दोनों ही योजनाएं बहुत अच्छी हैं और अगर सही तरीके से कार्यान्वित की जाएं, तो जनता के बड़े भाग को लाभ पहुँच सकता है। इन योजनाओं का आकार तय करने वालों को चाहिए कि वे प्राथमिक, माध्यमिक एवं तृतीय दर्जे की स्वास्थ्य योजनाओं की पचास वर्षों की विफलताओं को पहले समझें। इसके बाद इस क्षेत्र के विशेषज्ञों और प्रबंधकों से चर्चा करके ही कुछ तय करें। यह एक तकनीकी विषय है, जिसमें योजना का कार्यान्वयन के साथ-साथ उसका डिज़ाइन भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

  • सन् 1960 से हम स्वास्थ्य के उप केन्द्रों (SCs), प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों (PHCs) एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर करोड़ों रुपए खर्च करते आ रहे हैं। योजना के अनुसार ये तीनों प्रकार के केन्द्र काफी जनसंख्या को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान कर सकते हैं। परन्तु संसाधनों की कमी से इन केन्द्रों के पास बुनियादी ढांचों एवं कर्मचारियों की बहुत कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए न्यूनतम धनराशि उपलब्ध होने के बाद भी सेवाएं प्रदान नहीं की जाती हैं।

2014-15 में जरूरतमंद लोगों में से मात्र 28 प्रतिशत ही इन केन्द्रों पर आए। बाकी लोगों ने निजी स्वास्थ्य सेवाओं की शरण ली। इनमें ज्यादातर लोग झोला छाप डॉक्टर के चक्कर में फंसते हैं। यह हमारे स्वास्थ्य केन्द्रों की विफलता है। ग्रामीण एवं गरीब जनता को इन केन्द्रों पर भरोसा ही नहीं है।

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना पर सोशल साइंस एण्ड मेडिसीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस योजना से गरीबों का कुछ भी भला नहीं हुआ है। वे स्वास्थ्य समस्याओं पर अपनी जेब से खर्च करने को मजबूर हैं।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत मरीजों को महंगे उपचार या गैर आवश्यकता वाले उपचार की ओर स्थानांतरित करने की आशंका जताई जा सकती है।

सरकार की दोनों ही योजनाओं के लिए प्रशासन के स्तर पर मूलभूत सुधार करने की आवश्यकता होगी। काम करने वालों को पुरस्कार एवं कामचारों को दंड दिया जाना ही इसका पुख्ता ईलाज दिखाई पड़ता है। राज्य स्तरीय नोडल एजेंसियों को सतर्क रहना होगा, और मरीजों को जबरन महंगे या अनावश्यक ईलाज में फंसाए जाने से बचाना होगा।

योजना को इतना लचीला रखना होगा कि वह स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। अतः हमें स्वास्थ्य केन्द्रों को इस प्रकार से डिजाइन करना होगा कि वे उपकेन्द्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की विफलता की भरपाई कर सकें।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अरविन्द पन्गड़िया के लेख पर आधारित।