सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जापान और कोरिया से सीखने की जरूरत है
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- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान और कोरिया जैसे देश युद्ध की तबाही से जूझकर बाहर निकले और 80 एवं 90 के दशक में विश्व की विकसित अर्थव्यवस्थाओं के समकक्ष आकर खड़े हो गए। इनकी कंपनियां आज विश्व की सबसे ताकतवर कंपनियां बन गईं है। इनकी सफलता का राज बने इनके कार्पोरेट कर्मचारी आज भी उतने ही जुझारू, सजग और दृढ़निश्चयी हैं। वे जानते हैं कि सही मायने में चैथी औद्योगिक क्रांति किसे कहा जा सकता है। वे हर कदम पर तकनीकों के विषय में ऐसा सब कुछ जानने और समझने को उत्सुक हैं, जो भविष्य के प्रतिस्पर्धी विश्व में उन्हें ऊँचाई पर रखे।
- दूसरी ओर, यदि हम भारत की बात करें, तो यहाँ बुद्धिमत्ता और कौशल के होते हुए भी विस्तृत दृष्टिकोण की कमी दिखाई पड़ती है। यही कारण है कि 1990 में उदारीकरण की शुरूआत के साथ बढ़ने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था की लगाम खिंच सी गई। सन् 2000 से जापान और कोरिया की उत्तम तकनीकों ने जिस प्रकार से विश्व की अर्थव्यवस्था में परिवर्तन लाना प्रारंभ कर दिया है, भारतीय नीतियाँ और कौशल उस तुलना में अपने को परिवर्तित नहीं कर सके हैं।
- विश्व बाजार में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, जीनोमिक्स, रोबोटिक्स और सेंसर्स इतनी तेजी से आ रहे हैं, जो कई रोजगार और व्यवसाय के लिए घातक सिद्ध होंगे। अनेक प्रकार के रोबोट, इलेक्ट्रिक कार, सस्ती किफायती ऊर्जा आदि की ऐसी नई तकनीकें इतने विस्तृत स्तर पर लाई जा रही हैं, जो अनेक उद्योगों को खत्म कर देंगी।
- अमेरिकन कंपनी एमेजोन ने ऑन-लाइन बुकस्टोर के रूप में शुरूआत की थी। परन्तु नई तकनीकों और कार्यकुशलता के दम पर आज उसने भारत के ऑनलाइन बाजार में अपना सिक्का जमा रखा है। अब वह भारत में क्लाउड सेवाओं की एक बड़ी दावेदार कंपनी है। इसी प्रकार टैक्सी उद्योग में ओला और ऊबर ने, मनोरंजन उद्योग में एप्पल और नैटफ्लिक्स ने, ऑटोमोबाइल उद्योग में टेस्ला ने इलैक्ट्रिक कार के माध्यम से धूम मचा रखी है। आज के समय में एक उद्योग पर राज करने वाली कंपनियां दूसरे उद्योगों पर भी प्रभुत्व जमा रही हैं। उद्योग जगत में यही सबसे बड़ा खतरा है।
- भारत के बाजारों पर राज कर चुके व्यवसायियों की यही एक बड़ी समस्या है कि वे व्यवसाय को इस विघटन से बचाने की कोई तैयारी नहीं कर रहे हैं। इसका प्रभाव भारत के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में होने वाली छटनी के रूप में देखा जा सकता है। इस खतरे की दस्तक काफी वर्षों से दी जा रही है। परन्तु हमारे व्यवसायियों और तकनीकी विशेषज्ञों ने इस ओर जुटकर कदम नहीं बढ़ाए।
- हमारे कार्पोरेट भी पुराने तरीके से ही काम कर रहे हैं। हर कार्पोरेट कंपनी में मार्केटिंग, सेल्स, कस्टमर-सपोर्ट के अलग-अलग विभाग हैं और इन विभागों में ही आपसी प्रतियोगिता चलती रहती है। कार्पोरेट कंपनी अपने कर्मचारियों को विभागों से ऊपर उठकर अन्य कंपनियों से होड़ की परिकल्पना नहीं दे पाती। यही कारण है कि मोटोरोला और कोडक जैसी राजा कंपनियां भी बाजार से बाहर हो गईं।
- आधुनिक तकनीकों से एक ओर खतरे बढ़ रहे हैं, तो दूसरी ओर अवसर भी बढ़ रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से मनुष्य की निर्णयात्मक क्षमता बढ़ रही है। स्मार्ट सिटी और चिकित्सा क्षेत्रों में सेंसर्स के प्रयोग से लेकर कृषि में भी इनका उपयोग किया जा रहा है। अगर भारतीय इन अवसरों को अपनाकर इनका लाभ उठाए, तो वे विश्व के श्रेष्ठ व्यवसायियों में स्थान बना सकते हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित विवेक वाधवा के लेख पर आधारित।
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