विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विकास कैसे हो ?

Afeias
10 Aug 2022
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विज्ञान के क्षेत्र में भारत की शक्ति असीम है। परंतु यह अभी जाग्रत अवस्था में नहीं है। इस क्षेत्र में भारत के पिछड़ेपन के कुछ कारण हैं, जिनमें सुधार किया जा सकता है –

  • भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.6% ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर खर्च करता है। यह प्रतिशत ब्रिक्स देशों में सबसे कम है। अमेरिका, चीन और दक्षिण कोरिया क्रमशः 2.73%, 2.4% और 4%, खर्च करते हैं।
  • चूंकि भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान ज्यादातर सरकारी संस्थानों में ही होते हैं, इसलिए अत्याधुनिक अविष्कारों तक जनता की पहुंच नहीं बन पाती है।
  • विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, भारत ब्लूमबर्ग के ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2021 में 50वें और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन अनुसार 48वें स्थान पर है।
  • अनुसंधान के क्षेत्र में अमेरिका और चीन के सर्वश्रेष्ठ होने के साथ ही भारत 9वें स्थान पर है। वहीं भारतीय प्रतिमाओं की चमक विदेश में अच्छी है। कई ग्लोबल टैक जायंट के सीईओ भारतीय हैं। ब्रिटेन और अमेरिका में भारतीय डॉक्टर छाए हुए हैं। अमेरिका के वैज्ञानिकों में 12% भारतीय मूल के हैं। ऐसी उच्चता हमारे देश में क्यों नहीं है?
  • भारत में वैज्ञानिकों का बहुत समय प्रशासनिक कामों में चला जाता है। वे नौकरशाही से त्रस्त हो जाते हैं। यहाँ विश्व की सर्वोत्तम प्रक्रियाओं को अपर्याप्त रूप से अंगीकार किया जाता है। संस्थानों में प्रोत्साहन की कमी है। अनुसंधान के फलने-फूलने के लिए योग्यता केंद्रित प्रतिस्पर्धी माहौल की कमी है।
  • संस्थानों में अच्छे अनुसंधान उपकरण नहीं खरीदे जाते हैं। पर्याप्त मुआवजा नहीं दिया जाता है।
  • भारत में अधिकांश पीएचडी स्कॉलर को बहुत मामूली धनराशि दी जाती है। वे वैश्विक अनुसंधान नेटवर्क में शामिल नहीं हो पाते हैं।

नई शिक्षा नीति 2020 के तहत घोषित नेशनल रिसर्च फाउंडेशन अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र में आमूल चूल परिवर्तन के लिए अवसर प्रदान करता है। इसके सुधार के लिए अनेक प्रस्ताव विचारणीय हैं –

  • भारतीय वैज्ञानिकों को अनुसंधान में सक्षम बनाने के लिए कुशल प्रशासनिक तंत्र और अनुसंधान कार्यालय बनाना।
  • ईज ऑफ डुइंग रिसर्च के लिए संस्थागत स्वायत्तता प्रदान करना।
  • अनुसंधान फंडिंग और संवितरण को सुव्यवस्थित करना।
  • अनुसंधान को भारत की चुनौतियों और विकास-प्राथमिकताओं के साथ जोड़ना।
  • विदेशों की तर्ज पर भारत की प्रमुख शोध एवं अनुसंधान प्रयोगशालाओं को विश्वविद्यालयों से जोड़ना।

भारत को पीएचडी छात्रों और पोस्टडॉक्टरेट समुदायों को बनाने और उनका पोषण करने की जरूरत है। शुरूआती शोधकताओं के लिए कैरियर विकल्पों में सुधार किया जाना चाहिए। इससे अंततः विश्वस्तरीय शोध परिणाम प्राप्त होंगे। विज्ञान और प्रौद्योगिकी और उसके वैज्ञानिकों की सफलता का राष्ट्रव्यापी उत्सव मनाया जाना चाहिए। मीडिया को चाहिए कि वह इस क्षेत्र के समाचारों को अधिक-से-अधिक कवर करे। लोकप्रिय संस्कृति के हिस्से के रूप में वृत्तचित्रों और पुस्तकों में विज्ञान की सामग्री को बढ़ाया जाना चाहिए। इससे विज्ञान के प्रसार के साथ-साथ सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा मिलेगा। इन सभी तरीकों से देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए उत्थानशील अनुसंधान वातावरण बनाया जा सकता है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित जयंत कृष्ण के लेख पर आधारित। 4 जुलाई, 2022

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