सूचना के अधिकार कानून की रक्षा

Afeias
01 Nov 2019
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Date:01-11-19

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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा है कि पर्याप्त सरकारी मदद से चलने वाले गैर सरकारी संगठनों को सूचना के अधिकार के भाग 2(एच) के दायरे में ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ की तरह माना जाना चाहिए। अधिनियम में किसी भी उस प्राधिकरण या निकाय या स्व-शासन की कोई संस्था, जो संविधान के अंतर्गत स्थापित की गई हो, और जो पर्याप्त सरकारी मदद प्राप्त करती हो, को सार्वजनकि प्राधिकरण माना गया है।

जटिलताएं

अपने निर्णय में न्यायालय ने ‘पर्याप्त’ का अर्थ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर दी गई अच्छी मात्रा से है। इसका अर्थ अधिकांश धन या 50 प्रतिशत से अधिक की राशि जैसा कोई स्पष्ट फार्मूला नहीं कहा जा सकता। उदाहरण के लिए, अगर किसी हॉस्पिटल, स्कूल आदि के लिए कोई भूमि निःशुल्क या अच्छी-खासी सब्सिडी पर दी जाती है, तो उसे पर्याप्त वित्त पोषण माना जाएगा।

2013 में केन्द्रीय सूचना आयोग ने सार्वजनिक राजनीतिक दलों को प्राधिकरण मानते हुए उन्हें सूचना के अधिकार अधिनियम में शामिल कर लिया। उन्हें अपने मुख्य कार्यालय में छः सप्ताह के भीतर ही इससे संबंधित अधिकारी की नियुक्ति का आदेश दिया था। अधिनियम के भाग 19(7) में आने वाले आयोग के इस आदेश का किसी राजनैतिक दल ने पालन नहीं किया। आज्ञा के उल्लंघन से संबंधित आयोग के नोटिस के बावजूद राजनैतिक दल, सुनवाई में उपस्थित नहीं हुए।

2019 में इससे संबंधित एक जनहित याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की गई थी, जो विचाराधीन है।

फिलहाल डी.ए.वी. बनाम सार्वजनिक निर्देश के निदेशक वाले मामले में उच्चतम न्यायालय ने राजनैतिक दलों को सरकार द्वारा पर्याप्त वित्त पोषण प्राप्त करने वाला माना है। अतः उन्हें कानून के भाग 2(एच) के अंतर्गत ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ ही माना है।

जवाबदेही पर

आर टी आई की प्रस्तावना से स्पष्ट है कि इस उद्देश्यपूर्ण नियम को लागू करने का अंतिम लक्ष्य, नागरिकों को अपेक्षित सूचनाओं से लैस करके एक ऐसी नागरिकता का निर्माण करना है जिसमें भ्रष्टाचार और सरकार के साथ उसके साधनों के संबंध में जवाबदेही का शिंकजा कसा जा सके।

कानून आयोग मानता है कि हमारे संपूर्ण सांवैधानिक चरित्र में राजनैतिक दलों का महत्व धमनियों में दौड़ते रक्त की तरह है। डॉ.वी.आर.अंबेडकर भी मानते थे कि संविधान तो सरकार को अंग मात्र प्रदान कर सकता है। इन अंगों का संचालन नागरिक एवं राजनैतिक दल करते हैं।

राजनैतिक दलों के उत्तरदायित्व को समझते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जो निर्णय दिया है, उसका सम्मान किया जाना चाहिए एवं आर टी आई कानून को उसी दिशा में आगे बढ़ाया जाना चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित अनमोलन एवं शिवम् के लेख पर आधारित। 4 अक्टूबर, 2019

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