सभी फसलों पर समान लाभ दिया जाना, सरकार की गलती है।

Afeias
09 Mar 2018
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Date:09-03-18

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बजट 2018 में इस बात की गारंटी दी गई है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से फसल पर उनकी लागत का डेढ़ गुना दाम मिलेगा। ऊपर से देखने पर ऐसा लगता है कि इससे किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। परन्तु अनुभव बताता है कि यह सरकार की एक बड़ी गलती होगी।

  • सामान्यतः कृषि के विकास के लिए कम लागत में उत्पादकता बढ़ाने की बात कही जाती है। परन्तु सरकार की इस घोषणा से किसान दोनों ही पहलुओं पर कोई भी प्रयास करने से पीछे हट जाएंगे और निश्चिंत हो जाएंगे। भारत में छोटे किसानों के साथ-साथ, मझोले और बड़े किसान भी हैं। ऐसे मझोले और बड़े किसान ही अधिकतर अधिशेष फसल पैदा करते हैं। इस प्रकार सरकार की इस नीति का लाभ भी ऐसे ही किसानों को मिलेगा और छोटे किसान वहीं के वहीं रह जाएंगे।
  • इसी कड़ी में मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों को कमीपूरक अदायगी (deficiency payments) की घोषणा की है। इसके अंतर्गत सरकार द्वारा कुछ फसलों को दिए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार मूल्य के बीच की कीमत की भरपाई की जाती है। इस नीति का लाभ कुछ ही किसानों को मिल पाता है, क्योंकि बहुत से किसानों के पास पर्याप्त दस्तावेजों का अभाव होता है। दूसरे, इस प्रकार की अदायगी का लाभ लेने के लिए गल्ला व्यावारी और किसान मिलकर षडयंत्र करते हैं।
  • समान रूप से फसल की लागत का डेढ़ गुना दाम दिए जाने से किसानों के अंदर बाजार के रुख के अनुसार प्रतिस्पर्धात्मक फसल उगाने की प्रेरणा जगेगी ही नहीं। अतः सभी फसलों के लिए समान कमीपूरक अदायगी की नीति सही नहीं उतरती।
  • अंतराष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो भारत ने यूरोपियन यूनियन के देशों की गैर प्रतिस्पर्धात्मक उत्पादन को भारी सब्सिडी देने की नीति की स्वयं ही आलोचना की है। इसके चलते यूरोप में मक्खन, दूध, मीट और वाइन का अतिरिक्त उत्पादन हो गया था। इसे निपटाने के लिए किसानों को अपना उत्पाद सोवियत यूनियन को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ा था। भारत भी अब वही गलती दोहरा रहा है।

क्या किया जाना चाहिए?

  • भारत को वैश्विक बाजार की प्रतिस्पर्धा में खरी उतरने वाली फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देना चाहिए। इनके निर्यात को बढ़ाया जाए। दूसरी ओर, उन फसलों का आयात किया जाए, जिनकी विश्व बाजार में अधिक मांग नहीं है। इस प्रकार उत्पादकता में वृद्धि होगी, और कृषकों की आय में बढ़ोत्तरी होगी।
  • फसलों पर सब्सिडी देने की बजाय प्रति किसान परिवार को एक निश्चित कृषि क्षेत्र पर सब्सिडी दी जाए। इससे गरीब किसानों को निश्चित रूप से लाभ होगा। तेलंगाना ने प्रत्येक मौसम में 4000 रुपये प्रति एकड़ सब्सिडी का प्रावधान रखा है। ऐसा करना प्रशासनिक रूप से पारदर्शी और सुविधाजनक भी है। इसमें किसी प्रकार के भ्रष्टाचार की गुंजाइश न के बराबर रहती है।

इस प्रकार की व्यवस्था के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य को धीरे-धीरे समाप्त किया जा सकेगा। सूखे के दौरान किसानों को मनरेगा और फसल बीमा से राहत मिल सकेगी। इस प्रकार की योजनाएं न्यूनतम समर्थन मूल्य पर लाभ दिए जाने से बहुत बेहतर हैं।

स्वामीनाथन समिति ने ऋण पर ब्याज का एक नया फार्मूला दिया है। अगर इसे अपना लिया जाता है, तो फसलों की कीमतें आसमान छूने लगेंगी, मुद्रा-स्फीति बढ़ जाएगी तथा कृषि-उत्पादों का निर्यात बिल्कुल बैठ जाएगा। इससे किसानों को तो बैठे-बिठाए लाभ मिलेगा, परन्तु अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाएगी।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित स्वामीनाथन एस अंकलेश्वर अय्यर के लेख पर आधारित।