सकारात्मक आर्थिक स्थितियों की अस्थिरता
Date:07-06-18 To Download Click Here.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के क्षेत्रीय आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार एशिया-प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्था, वैश्विक अर्थव्यवस्था के इंजन का काम करेगी। इस क्षेत्र में निकट अवधि में, विकास की संभावनाओं में सुधार हुआ है। अनेक संभावनाओं के बावजूद विकास के क्षितिज पर कुछ खतरे भी मंडरा रहे हैं। इनमें सबसे पहली चुनौती (1) वैश्विक वित्तीय स्थितियों की मजबूती की, (2) देशों का संरक्षणवादी नीति अपनाते जाना और (3) भू राजनीतिक तनावों का बढ़ना है।
यूं तो इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को निकट अवधि में कोई जोखिम नहीं है। परन्तु मध्यम अवधि के दौरान यह प्रबल हो सकता है। वैश्विक वित्तीय स्थितियों में फिलहाल आई हुई गिरावट का सकारात्मक रुख एशिया-प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती सिद्ध हो सकता है। विश्व की प्रमुख आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं के संरक्षणवादी नीति अपनाने का सीधा प्रभाव एशिया पर पड़ेगा। अभी तक आर्थिक एकीकरण का लाभ एशियाई देशों को मिला है।
भू-राजनीतिक तनावों का गहरा प्रभाव वित्तीय एवं आर्थिक परिणामों के रूप में देखा जा सकेगा। मध्यम अवधि में आने वाली इन चुनौतियों के अलावा कुछ ऐसी चुनौतियां हैं, जो दीर्घकाल में एशियाई अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती हैं। (1) आबादी की बढ़ती उम्र, (2) उत्पादकता वृद्धि की धीमी गति तथा (3) डिजीटल अर्थव्यवस्था।
वर्तमान में जिन एशियाई देशों को युवा जनसंख्या का लाभ मिल रहा है, वह आने वाले समय में स्वाभाविक रूप से कम हो जाएगा। भारत को भी इस मामले में सजग होकर नीतियां तय करनी चाहिए। विकास की गति को इस प्रकार से बढ़ा लेना चाहिए कि जनसंख्या के वृद्ध होने से पहले ही वह पर्याप्त धनी हो सके। विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में उत्पादकता वृद्धि की धीमी दर का अनुमान भी दीर्घकाल में आने वाली एक चुनौती है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था डिजीटल होती जा रही है। इस दिशा में हाल ही में उठाए गए कुछ कदम परिवर्तनकारी हो सकते हैं परन्तु ये भविष्य में रोजगार के लिए अनेक चुनौतियां भी खड़ी करने वाले हैं। निकट अवधि के विकास को देखते हुए देशों को, मैक्रोइकॉनॉमिक नीतियों पर ध्यान देना चाहिए। कई देशों की आर्थिक अवस्था के उछाल को देखते हुए दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर विचार किया जाना चाहिए। साथ ही नीति-निर्माताओं को ऋण को नियंत्रण में रखना सुनिश्चित करना चाहिए।
भारत जैसे देश को भी राजस्व संग्रहण के उपायों में मजबूती लानी चाहिए, ताकि बुनियादी ढांचों एवं सामाजिक कारणों पर व्यय जैसे संरचनात्मक सुधारों को संभव बनाया जा सके। इस क्षेत्र में नरम मुद्रास्फीति के चलते मौद्रिक नीति उदार रह सकती है। फिर भी, सेंट्रल बैंकों को सजग रहने की आवश्यकता है। एक अनुमान के अनुसार, कुछ अस्थायी वैश्विक कारकों के चलते एशिया में मुद्रास्फीति अंडरशूट हुई है। यह स्थिति उलट भी सकती है।
समाधान
- उत्पादकता और निवेश को बढ़ावा देने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।
- श्रम-बल भागीदारी में लैंगिक भेद कम से कम हो।
- जनसंख्या में उम्र के संक्रमण के दौर से उचित प्रकार से निपटा जाये।
- तकनीक एवं व्यवसाय के तरीके में परिवर्तन से प्रभावित हुए लोगों को सहारा दिया जाए।
- भारत को बैंकिंग और कार्पोरेट के खतरों को कम करना चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रशासन को मजबूत करना चाहिए, तथा केन्द्र एवं राज्यों में राजकोषीय समेकन को जारी रखना चाहिए।
सुधारों के लिए किए जा रहे प्रयासों को बनाए रखने की आवश्यकता है। इसके लिए श्रम एवं उत्पाद बाजारों की क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ कृषि के आधुनिकीकरण का प्रयास किया जाना अच्छा होगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित एंड्रियास बऊर और रनिल सेल्गडो के लेख पर आधारित। 12 मई, 2018