शस्त्र नियंत्रण प्रयासों की विफलता    

Afeias
30 Sep 2019
A+ A-

Date:30-09-19

To Download Click Here.

गत अक्टूबर, अमेरिका और रुस के इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्स ट्रीटी (आईएनएफ) की उलटी गिनती शुरू हो गई। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इससे हाथ खींचने की घोषणा की और 2 अगस्त को ऐसा कर दिखाया। 1987 में सम्पन्न हुए इस समझौते में दोनों देशों ने निश्चय किया था कि वे 500 से 5,500 कि.मी. दूर तक मार करने वाली सभी जमीनी मिसाइलों को हटा लेंगे।

शीत युद्ध का दौर-

1985 में दोनों देशों ने तीन बिन्दुओं को आधार में रखकर समझौता किया था। इस समझौते को निशस्त्रीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया था। हालांकि इसके अंतर्गत हुए समझौते के अनुसार न तो कोई परमाणु हथियार नष्ट किए गए और न ही एयर लांच और सी-लांच मिसाइलों पर प्रतिबंध लगाया गया। आगे भी इस समझौते से अन्य देशों को किसी प्रकार के प्रतिबंधों के लिए विवश नहीं किया गया था। 1991 तक आई एन एफ को लागू किया गया। दोनों ही देशों ने पर्शिंग और क्रूज़ मिसाइल को नष्ट किया। इस समझौते में जमीनी स्तर पर सत्यापन भी किया गया था।

शीत युद्ध की समाप्ति और 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद हथियारों की प्रतिस्पर्धा का दौर समाप्त हो गया। सोवियत के पुराने मित्र देश अब नार्थ एलायंसट्रिटी आर्गनाइजेशन (नाटो) से जुड़ने लगे, और यूरोपीय संघ का सदस्य बनने की इच्छा रखने लगे।

अमेरिका और एंटी बैलिस्टिक मिसाइल समझौता

2001 में अमेरिका ने एंटी बैलिस्टिक मिसाइल ट्रीटी (ए बी एम) से एकतरफा हाथ खींच लिया। आई एन एफ समझौते पर भी काले बादल मंडरा रहे हैं। रूस में नोवाटर के उत्पादन के साथ ही ओबामा प्रशासन ने समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाया। रूस ने उल्टे अमेरिका पर पोलैण्ड और रोमानिया में मिसाइलें तैनात करने का आरोप लगा दिया। रुस को लगने लगा था कि अमेरिका ने ए बी एम समझौते से पीछे हटकर एक प्रकार का धोखा दिया है।

2017 के अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी एण्ड द न्यूक्लियर पोस्चर रिव्यू के दौरान रुस को बढ़ती विघटनकारी शक्ति के रूप में आंका गया। पहली बार चीन को हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में अमेरिका का प्रतिस्पर्धी माना गया, जो भविष्य में इस क्षेत्र से अमेरिका का अस्तित्व मिटा सकता था।

भू-राजनैतिक स्थिति को देखते हुए अमेरिका को आई एन एफ समझौता खटकने लगा। चीन अपनी शक्ति बढ़ाने लगा था। अतः इस दिशा में 2011 को नए स्टार्ट फ्रेमवर्क को लाया गया, जिसकी समयावधि 2021 तक है। राष्ट्रपति ट्रंप ने इसके प्रति अपनी नापसन्दगी दिखाई है, और अगर वे 2020 का चुनाव जीत जाते हैं, तो निश्चित रूप से इसका हश्र भी आई एन एफ जैसा ही होगा।

कम-शक्ति वाले हथियारों का परीक्षण

अमेरिका ने 1999 में क्राम्प्रिहेन्सिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी को अस्वीकृत कर दिया था, परन्तु उसका हस्ताक्षरकर्ता बना रहा। सी टी बी टी के लिए अमेरिका, चीन, ईरान, इजरायल और मिस्र का समर्थन और भारत, पाकिस्तान व उत्तर कोरिया को पालन के लिए तैयार करना होगा। अगर अमेरिका फिर से परीक्षण शुरू करता है, तो यह समझौता भी विफल रहेगा।

शीत युद्ध के द्विपक्षीय समझौतों से अलग, अब परमाणु अस्त्र की दौड़ को रोक पाना मुश्किल है, क्योंकि इसमें कई देश शामिल हो चुके हैं। तेजी से होते तकनीकी परिवर्तनों ने अनेक विवादों को जन्म दिया है। इससे परमाणु अस्त्र नियंत्रण कार्यक्रम पर गहरा प्रभाव पड़ने वाला है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित राकेश सूद के लेख पर आधारित। 24 अगस्त, 2019

Subscribe Our Newsletter