वे, जिनका महत्व नहीं समझा गया

Afeias
14 Feb 2019
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Date:14-02-19

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धारणीय विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में भारत के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। इसके लिए उसे एक स्वस्थ और कौशलपूर्ण कार्यबल की नितांत आवश्यकता है। देश की आर्थिक प्रगति, सामाजिक एवं मानवीय विकास में शिक्षकों, नर्सों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पंचायत सचिवों और लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों की अहम् भूमिका है। यही कारण है कि देश के सामाजिक पैमाने के लिए इन अग्रणी कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार भी माना जाता है, और इनके असफल होने पर इनकी आलोचना भी की जाती है। इन कार्यकर्ताओं की कार्य करने की स्थितियों का उतना संज्ञान नहीं लिया जाता है, जितना कि इनकी जिम्मेदारी को देखते हुए जरूरी है।

इन कार्यकर्ताओं को बुनियादी ढांचे, निम्न स्तर के प्रशिक्षण, सरकारी रिर्पोटिंग, जवाबदेही के निश्चित पैमाने के अभाव, शिकायतों के निराकरण के अलावा कार्य के अनुरूप बहुत कम वेतन पर काम करना पड़ रहा है। उस पर प्रतिक्रिया यह होती है कि सभी सरकारी कर्मचारियों को वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार ही वेतन दिया जा रहा है। इनसे जुड़े कुछ तथ्यों पर एक दृष्टि डाली जानी चाहिए।

  • देश में लगभग 14 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। इनके पास छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाने से लेकर इनके पोषण और स्वास्थ्य संबंधी परामर्श के लिए घर-घर जाने का काम होता है। इनके काम की महत्ता के बावजूद इनके पद को ‘अस्थायी’ ही रखा गया है।
  • देश के अधिकांश भागों में इन कार्यकर्ताओं का वेतन पांच हजार रुपये मासिक है, जो न्यूनतम वेतन सीमा से भी कम है। इसके बाद, वेतन मिलने में देर व अनियमितता भी जैसे एक सामान्य सी बात है।

2016 में केन्द्र द्वारा छः राज्यों में किया गया अध्ययन यह बताता है कि 35 प्रतिशत कार्यकर्ताओं को पूर्व माह का वेतन नहीं मिला था। 50 प्रतिशत कार्यकर्ताओं को लगता था कि आंगनबाड़ी केन्द्रों की गतिविधियों के अनुसार उन्हें निधि नहीं दी जाती है। 40 प्रतिशत ने बताया कि उन गतिविधियों को जारी रखने के लिए वे अपनी जेब से धन लगाते हैं।

  • दूसरा उदाहरण सरकारी स्कूल के शिक्षकों का है। बजट में शिक्षा क्षेत्र को बहुत कम धनराशि का आवंटन किया जाता है। अतः शिक्षकों का वेतनमान, वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार निर्धारित नही किया जा सकता। कई वर्षों से बहुत थोड़े से शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। रिक्तियां बढ़ती जा रही हैं। परिणामस्वरूप, शिक्षकों की भर्ती कांट्रैक्ट पर की जा रही है। अतः एक ही पद पर 3,700 रु. से लेकर 50,000 तक का वेतन दिया जा रहा है। गुजरात के कुछ शिक्षकों ने इस पक्ष को लेकर मुकदमा दायर किया है, जिससे पता चलता है कि उन्हें न्यूनतम वेतन से भी कम मिलता है। यह मुकदमा आगे बढ़कर उच्चतम न्यायालय में चार वर्षों से लटका हुआ है।
  • मध्यप्रदेश के एक पोषण पुनर्वास केन्द्र में पूरे समय काम करने वाली नर्स को मात्र 10,000 रु. वेतन मिलता है।

शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत कांट्रैक्ट शिक्षकों की भर्ती बंद कर दी गई है। परन्तु अभी भी इन अस्थायी शिक्षकों की स्थिति को ‘स्थाई’ दिखाकर अस्थाई नियुक्तियां की जा रही हैं। विद्यालयीन शिक्षकों को शिक्षण से इतर अनेक प्रशासनिक काम थमा दिए जाते हैं, जिसके कारण शिक्षा का स्तर घटता जा रहा है।

सत्य यह है कि प्राथमिक स्तर पर काम करने वाले अग्रणी कार्यकर्ता, अपनी कार्यक्षमता का पूरा-पूरा नहीं दे पाते हैं। इसके लिए प्रशासनिक ढांचे में सुधार करने की आवश्यकता है। पूरे तंत्र में सुधार के साथ ही इनके प्रदर्शन में भी सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

द इंडियन एक्सप्रेसमें प्रकाशित किरण भाटी और दीपा सिन्हा के लेख पर आधारित। 24 जनवरी, 2019