विनिर्माण का गढ़ कैसे बने भारत ?

Afeias
11 Sep 2020
A+ A-

Date:11-09-20

To Download Click Here.

महामारी के चलते वैश्विक परिदृश्य में आज बदलावों से कई विनिर्माण उद्योगों के चीन से पुनस्थापित होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसा होने के पीछे तीन प्रमुख कारण हो सकते है –

  1. बहुत से देशों ने कोविड-19 के चलते आपूर्ति श्रृंखला में आई भारी अनियमितताओं को देखते हुए यह समझ लिया है कि विनिर्माण सामग्री की उपलब्धता और क्षमता बढ़ाने के लिए चीन जैसे देश पर निर्भर रहना ठीक नहीं है।
  1. आवश्यक औद्योगिक सामग्री पर चीन के बढ़ते प्रभुत्व से अनेक देश भयभीत हैं।
  1. चीन और अन्य देशों के बीच भू-राजनीतिक और व्यापारिक संघर्षों के मद्देनजर , चीन के साथ काम करने या उससे निपटने के लिए जोखिम और अनिश्चितता बढ़ती जा रही है।

क्या भारत को चीन का विकल्प माना जा सकता है ?

विनिर्माण के क्षेत्र में, चीन की तुलना में भारत बहुत पीछे है। कुछ आंकड़ों से इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है।

  • विनिर्माण आउटपुट में चीन की वैश्विक रैंकिंग एक है , जबकि भारत की छठी है।
  • 2018 में भारत के जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 15% था। यह चीन से आधा है।
  • 1978 में चीन की मुक्त अर्थव्यवस्था के साथ इसका उद्योग मूल्य प्रतिवर्ष 10.68% बढ़ता रहा , जबकि भारत की मुक्त अर्थव्यवस्था के 12% लक्ष्य के बावजूद यह 7% ही बढ़ा है।
  • 2018 में विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में चीन का दूसरा स्थान रहा , जबकि शीर्ष दस निर्यातकों में भारत का कोई स्थान नहीं रहा।

कमी कहाँ है ?

  • भारत के विनिर्माण उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए बहुत कुछ करना जरूरी है।
  • बुनियादी ढांचे में वृद्धि ।
  • कर नीति में सुधार।
  • प्रतिकूल नियमन में अनुकूलता लाना।
  • औद्योगिक ऋण की ऊंची दर को घटाना।
  • कार्यबल की क्षमता और कौशल को बढ़ाना।
  • श्रम कानून को लचीला बनाना।
  • भूमि-अधिग्रहण में अवरोधों को दूर करना।
  • विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करना।

इन चुनौतियों से निपटकर ही भारत विनिर्माण की महाशक्ति चीन का विकल्प बनने की सोच सकता हैं।

राज्यों की भूमिका

चुनौतियों से निपटने के लिए राज्यों की सक्रिय भूमिका के साथ-साथ केंद्र व राज्यों के बीच तारतम्य का होना आवश्यक है।

वर्तमान स्थिति और समाधान –

  • विनिर्माण क्षेत्र के विकास का मुख्य आधार भूमि है। इसकी उपलब्धता के आधार पर ही यह क्षेत्र महाराष्ट्र , गुजरात , तमिलनाडु , कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में उभरा हुआ है। लेकिन कुछ राज्यों के पास पर्याप्त भूमि होते हुए भी विनिर्माण में उनका योगदान बहुत कम है।
  • विनिर्माण में पिछडे राज्यों की औद्योगिक रणनीतियों के पुर्नमूल्यांकन और क्रियान्वयन की बागडोर केंद्र को अपने हाथों में लेनी होगी।
  • सशक्त और सतर्क नीतियों से राज्यों के विकास के साथ ही पूरे देश में निवेश का वातावरण तैयार होगा। इससे रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे , और आर्थिक विकास संभव होगा।

इस संदर्भ में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हाल ही में इलैक्ट्रानिक उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों व शीर्ष उद्योगों के प्रतिनिधियों के साथ एक रणनीतिक समूह बनाने का प्रस्ताव रखा है। इसका उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों के तालमेल से इलैक्ट्रॉनिक विनिर्माण में उत्तम नीतियां बनाना है।

उम्मीद की जा सकती है कि विनिर्माण के अन्य क्षेत्रों में भी इस प्रकार का दृष्टिकोण रखकर काम किया जाएगा , जिससे भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी बनाया जा सके।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित स्थानू आर नायर के लेख पर आधारित। 26 अगस्त , 2020