विकेंद्रीकरण के लिए निचले स्तर तक जाने की जरूरत है
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- हमारे देश में शक्ति के विकेंद्रीकरण पर लाखों चर्चाएं होती रही हैं। इस संबंध में राज्यों को नए जिले बनाने और उनमें परिवर्तन करने का भी समुचित अधिकार दिया गया है। यह अधिकार उन्हें भू-राजस्व कानून के अंतर्गत दिया गया है। इस कानून के अन्तर्गत उन्हें जिला बनाने के साथ-साथ जिले का उप-विभाजन करने और गाँव बनाने तक के अधिकार दिए गए हैं। राज्यों को यह अधिकार दिए जाने से देश के अलग-अलग राज्यों में जिलों की संख्या अलग-अलग है।
- नए जिलों के निर्माण के दौरान जनसंख्या, भौगोलिक क्षेत्र और जिला मुख्यालय से उसके अन्य क्षेत्रों की दूरी को ध्यान में रखा जाता है। जब एक बार भू-राजस्व कानून के अंतर्गत किसी जिले का निर्माण कर दिया जाता है, तो वहाँ सभी सरकारी कार्यक्रमों को डी आर डी ए (District Rural Development Agency) के द्वारा चलाया जाता है। इन्हें चलाने के लिए जिला परिषद् जिला पंचायत के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। इसी प्रकार आगे ब्लॉक और गांवों में भी चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा इन कार्यक्रमों को चलाया जाता है।
- जहाँ नया जिला बनाया जाता है, वहाँ राज्य चुनाव आयोग द्वारा जिला परिषद् का निर्माण भी एक प्रकार से अनिवार्य सा हो जाता है। एक जिले के विकास के लिए कलेक्टर या जिला आयुक्त, डी आर डी ए, सांसद, विधायक और जिला परिषद् काम करते हैं। अगर ये सभी लोग एकजुट होकर काम न करें, तो जिले का कामकाज छिन्न-भिन्न हो सकता है। ऐसा लगता है कि डी आर डी ए (जिसमें विधायक और सांसद शामिल होते हैं) के कारण ही जिला-स्तरीय योजनाएं ठीक ढ़ंग से काम कर पा रही हैं।
- दूसरी ओर, अगर हम 1950 के भारत पर नज़र डालें, तो उस समय सरकार के विकास कार्यक्रम ब्लॉक स्तर पर एक ब्लॉक डेवलेपमेंट अधिकारी के निरीक्षण में चलाए जाते थे। इनके साथ तहसीलदार या तालुकदार और ग्राम पंचायत के भिन्न – भिन्न स्तर; जिन्हें मंडल, ताल्लुका, ब्लॉक या ब्लॉक समिति कहा जाता है, भी विकास कार्यों का हिस्सा हुआ करते थे।
- विकेंद्रीकरण की नीति का अर्थ यही है कि विकास कार्यों की शुरूआत सबसे निचले स्तर से प्रारंभ की जाएं। जिला और ब्लॉक तो ऊपर के स्तर हैं। इनसे नीचे आने वाले ग्राम पंचायत या ग्राम सभा के पास कार्य निरूपण के लिए योजनाओं का होना बहुत जरूरी है। इससे ही योजनाओं में सच्ची साझेदारी लाई जा सकेगी। लेकिन फिलहाल हमारे पास ब्लॉक और जिले की तरह के सुसंगत ढांचे का अभाव है। यहाँ तक कि हमारी ग्राम पंचायतों के चुने हुए प्रतिनिधियों और कार्यकारी शासकीय अधिकारियों के बीच संपर्क का घोर अभाव है। जब तक इसे दूर नहीं किया जाता, तब तक सरकार की विकास योजनाएं और इन योजनाओं के नाम पर बंटने वाला धन बेमानी रहेंगे।
- आज हमारे लिए एक बहुत बड़ा प्रश्न मुँह बाए खड़ा है कि जिलों की तरह ही हमारी ग्राम पंचायतों और पंचायत समितियों में योजनाओं के निर्धारण और विकास कार्यों को अंजाम देने के लिए कौन जिम्मेदार है ? यह प्रश्न अनुत्तरीय सा है, क्योंकि जब भी हम विकेंद्रीकरण की बात करते हैं, केवल जिलों तक की ही बात करते हैं।
‘द इंडियन एक्सप्रेस‘ में विवके देवराय के लेख पर आधारित।
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