2019 में उठाए जाने योग्य आठ महत्वपूर्ण कदम

Afeias
01 Feb 2019
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Date:01-02-19

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आने वाले समय में भारत की आर्थिक प्रगति को आधार बनाकर उसका चहुंमुखी विकास करने के उद्देश्य से, भारत के तेरह प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने कुछ ठोस नतीजे निकाले हैं। उनका मानना है कि आने वाले चुनावों में विभिन्न राजनैतिक दल इन बिन्दुओं को अपने घोषणा-पत्र में शामिल करके, सत्ता में आने पर यदि इनके अनुसार कदम बढाएं, तो भारत के सामने आ रही चुनौतियों का सामना करके, सुधारों को मूर्तरूप दिया जा सकेगा।

विकास में सरकार की अहम् भूमिका होती है। परन्तु उसकी अपनी सीमाएं हैं। उसकी क्षमताओं का भरपूर उपयोग तभी हो सकता है, जब उसकी नीतियों में स्थिरता हो। इससे ही किसानों और फर्मों को अपनी योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी और बाजारों में उछाल आएगा। सहकारी संघवाद भी विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। राज्यों और केन्द्र के बीच तालमेल होना आवश्यक है। इस पर आधारित आठ बिन्दु ऐसे निकाले गए हैं, जो देश के विकास के लिए 2019 में कारगर सिद्ध हो सकते हैं।

  1. राज्यों और केन्द्र का राजकोषीय घाटा इतना अधिक होता है कि उसके बाद निजी निवेश के लिए अल्प और महंगे संसाधन ही बचे रहते हैं। हमें फिस्कल रेस्पांसिबिलिटी एण्ड बजट मैनेजमेंट द्वारा अनुशंसित 5 प्रतिशत के लक्ष्य को 2023 तक प्राप्त कर लेना चाहिए। परन्तु इसे हमें भटकाव या हेर फेर वाली (क्रिएटिव अकांउटिंग) अकांउटिंग और ऑफ बैलेंस शीट ट्रांसजैकशन से प्राप्त नहीं करना है। इसके लिए राजस्व में वृद्धि करनी है। यह वृद्धि बेहतर अनुपालन और प्रगतिशील कर-प्रणाली से होगी।

राज्यों के घाटे को कम करने के लिए निश्चित सीमा से अधिक राज्य द्वारा लिए गये कर्ज को स्पेशल बांडस के माध्यम से दिया जाना चाहिए। जीएसटी कांउसिल की तरह की कोई परिषद् बनाई जाए, जो राजकोष के संघीय ढांचे पर काम करे।

  1. वर्तमान में कृषि, विद्युत और बैंकिंग; तीन ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें गहरा असंतोष है। सरकार ने घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए समय-समय पर निर्यात पर जो पाबंदी लगाई और बड़ी संख्या में आयात किया है, उससे कृषि-संकट उत्पन्न हुआ है। किसानों की योजनाओं में बहुत ज्यादा हस्तक्षेप किया। उनको सस्ती और मुफ्त बिजली देकर भू-जल स्तर को संकट रेखा तक पहुंचा दिया गया। किसानों के लिए ऋण-माफी और न्यूनतम समर्थन मूल्य सही हल नहीं है। तेलंगाना की तर्ज पर एक मुश्त धनराशि के विकल्प से बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

विद्युत क्षेत्र में सरकारी विद्युत आपूर्ति कंपनियां बिजली उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच पिस रही हैं। कंपनियां अधिक बेचना चाहती हैं, और दूसरी ओर उपभोक्ता एक भरोसेमंद आपूर्ति चाहता है। इसके लिए बेहतर मीटरिंग हो, जिसमें बिजली का दाम सही लगाया जाए। वितरित उत्पादन एवं इसमें विकेन्द्रीकरण के लिए स्वच्छ तकनीक को बढ़ावा दिया जाए।

बैंकिंग क्षेत्र में व्याप्त असंतोष को दूर करने के लिए सरकार की ओर से सतत् समाधान किए जाने की आवश्यकता है।

  1. हमें सुगम व्यावसायिक वातावरण तैयार करना होगा। राज्यों के अनुभवों से सीखकर भूमि- अधिग्रहण, उद्योगों से जुड़े नियमन,विद्युत और लॉजिस्टिक एवं पर्यावरण संबंधी अनुमति प्राप्त करने में सुगमता लानी होगी। इसके लिए केन्द्र राज्य उत्पादकता परिषद् जैसी संस्था उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इस प्रकार की परिषद् विशेष आर्थिक क्षेत्र (स्पेशल इकॉनॉमिक ज़ोन) के विचार को पुनर्जीवित कर सकती है, जिसे समन्वित भूमि, पर्यावरण संबंधी मंजूरी, परिवहन संबंधी बुनियादी ढांचा आदि तत्काल ही उपलब्ध हो जाते हैं। ये क्षेत्र न केवल निर्यात के लिए सार्थक हैं, बल्कि इन्हें श्रम-कानून में सुधार के प्रयोग की दृष्टि से भी उपयोग में लाया जा सकता है।
  2. धारणीय विकास के लिए अधिक प्रभावशाली एवं कम बोझिल नियमन प्रक्रिया की आवश्यकता है। हमारे नगर घुट रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। इन समस्याओं से जूझने के लिए नगरपालिकाओं को अधिक शक्ति व धन चाहिए। विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाया जाना चाहिए। अन्य क्षेत्रों में केन्द्रीकरण बढ़ाने की जरूरत है, जैसे-तकनीकी रूप से उन्नत पर्यावरण नियामक, अलग-अलग निकायों में निहित शक्तियों का जोड़ना आदि।
  3. समाज के अनेक वंचित तबकों को सरकार अनेक प्रकार से लाभ पहुँचाने का प्रयत्न करती है। परन्तु उनकी पहुँच ठीक प्रकार से नही बन पाती। इसका सबसे अच्छा तरीका कैश ट्राँसफर हो सकता है। शुरुआत के तौर पर लाभार्थी को नकद और वस्तु में विकल्प दिया जा सकता है।

लोगों की क्षमता को बढ़ाकर भी बहुत सी चुनौतियों का सामाना किया जा सकता है।

  1. डिजीटलीकरण, व्यापारिक-समझौतों एवं पर्यावरणीय नियमन जैसे उच्च विशेषता वाले क्षेत्रों में हमें अधिक सक्षम सरकारी अधिकारी चाहिए। इसके लिए उच्च स्तर की प्रशासनिक सेवाओं में पार्श्व प्रवेश के माध्यम से नियुक्तियों को बढ़ाया जाना चाहिए। निचले स्तर पर, बहुत से युवा उन सरकारी नौकरियों की तैयारी में अपना समय गंवा देते हैं, जो उन्हें कभी मिलने वाली नहीं है। इन युवाओं में 26 वर्ष से कम आयु वालों को सरकार में इंटर्नशिप दी जा सकती है। इनका वेतनमान बाजार में नवनियुक्तों के लिए प्रचलित वेतनमान जितना ही रखा जाए। इन युवाओं को किसी भी प्रकार के दबाव में स्थायी न किया जाए।
  2. शिक्षा के अधिकार कार्यक्रम में बच्चों के पंजीकरण पर अधिक ध्यान दिया गया है। इसमें उनकी सीखने की क्षमता काफी गिर गई है। प्रत्येक सरकारी व निजी स्कूल को बच्चों में मूलभूत स्तर का कौशल विकास करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाए। पिछड़ चुके बच्चों को रास्ते पर लाने का काम चुनौतीपूर्ण है।
  3. असंक्रामक रोगों का तेजी से प्रसार हो रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर काम करने की जरुरत होगी। इनके लिए बहुत से ऐसे कार्यकर्ता चाहिए, जो भले ही औपचारिक योग्यता न रखते हों, परन्तु प्रशिक्षण के जरिए इन्हें योग्य बनाया जा सकता है। रोगियों तक इनकी पहुंच होने के कारण इनकी सार्थकता को काम में लाया जाना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रघुरमन राजा और अभिजीत बनर्जी के लेख पर आधारित। 1 जनवरी, 2019

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