वसुधैव कुटुम्बकम्
Date:13-02-19 To Download Click Here.
भारत ”वसुधैव कुटुम्बकम् ” की अवधारणा को आत्मसात करता चलता है। इसका अर्थ है कि हम पूरी पृथ्वी को एक परिवार की तरह मानते हैं। फिर भी हम अपने ही परिवार के लगभग एक करोड़ लोगों को अपने से अलग रखकर उनसे भेदभाव कर रहे हैं। पूरे विश्व में भारतीय मूल के लोगों का एक बड़ा वर्ग है, जिन्हें अन्य देशों का पासपोर्ट मिला हुआ है। परन्तु वे भारतीय पासपोर्ट के अधिकारी नहीं बन सके हैं। अधिक से अधिक उन्हें ओवरसीज़़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड रखने की अनुमति दी जाती है।
ओसीआई कार्ड के जरिए भारतीय मूल के लोगों को भारत-यात्रा एवं वहाँ काम करने की छूट भर दी जाती है। लकिन उन्हें (1) मतदान (2) वैकल्पिक सार्वजनिक कार्यालय रखने (3) सरकारी नौकरियों के लिए उम्मीदवारी तथा (4) कृषि सम्पत्ति रखने का अधिकार नहीं दिया जाता है। ”वसुधैव कुटुम्बकम्” की हमारी पारंपरिक दार्शनिक और नैतिक धारण के बावजूद भेदभाव की ऐसी नीति समझ से परे है।
विश्व के लगभग 50 देश; जिसमें अमेरिका, कनाडा और यू.के. भी शामिल हैं, दो या अनेक देशों की नागरिकता प्राप्त करने की छूट देते हैं।
भारतीय मूल के लोगों को नागरिकता देने के लिए यदि उनकी निष्ठा को पैमाना बनाया जाता है, तब भी वे उस पर खरे उतरते हैं। सन् 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय-अमेरिकी नागरिकों ने अमेरिकी राष्ट्रपति और वहाँ की जनता के भारत के प्रति दृष्टिकोण को बनाने में अहम् भूमिका निभाई थी। इसके परिणामस्वरूप ही पाकिस्तान पर पीछे हटने के लिए दबाव डाला गया था। दूसरे, अप्रवासी भारतीयों ने भारत को परमाणु संघ में शामिल किए जाने को लेकर भी अमेरिकी राजनीति में अपनी भूमिका निभाई थी।
अगर हम अपने ही मूल के लोगों की निष्ठा को पैमाना बनाकर उन्हें नागरिकता से वंचित करने का प्रयत्न कर रहे हैं, तो यह बिल्कुल गलत लगता है। हमारे अपने अनेक नागरिक ऐसे हैं, जो कर-चोरी, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद के माध्यम से देश को खोखला करने की कोशिश कर रहे हैं, परन्तु ऐेसे किसी भी कारण से आज तक किसी को नागरिकता से वंचित नहीं किया गया है।
दोहरी नागरिकता प्रदान करके भारत को केन्द्रीय, प्रांतीय और स्थानीय स्तर पर लाभ ही होगा। विदेश में रह रहे लोगों को राजनैतिक अधिकार देकर उन्हें देश की राजनीति में शामिल किया जा सकेगा। अनेक स्तरों पर उनके अनुभवों, सृजनात्मकता और अन्वेषण से जन्मे कौशल का लाभ लिया जा सकेगा।
भारतीय मूल के अनेक भारतीयों को विदेशों में सफल संस्थानों के निर्माण और संचालन का श्रेय प्राप्त है। वे लोग अच्छे नागरिक होने की अपेक्षाओं और सार्वजनिक जीवन में उसके महत्व को अच्छी तरह से समझते हैं।
ये वही भारतीय हैं, जो प्रत्येक वर्ष औसतन 70 खरब डॉलर की विदेशी मुद्रा, किसी न किसी रूप में भारत भेजते हैं। यह हमारे सकल घरेलू उत्पाद का 3 प्रतिशत होता है। इस राशि से देश की आर्थिक स्थिरता को बनाने में मदद मिलती हैं। इन्हें देश की नागरिकता प्रदान करके भारत से गहराई से जोड़ा जा सकता है। इससे भारत के विदेश मुद्रा भंडार में और भी बढ़ोत्तरी की उम्मीद की जा सकती है।
विदेशों में रह रहे सभी भारतीय लोगों को नागरिकता देकर हम भारत के परिवार का सकारात्मक विस्तार कर सकते हैं। इनको शामिल करके हम पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा, वरन् अनेक महत्वपूर्ण लाभ ही प्राप्त हो सकेंगे।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित राजीव जे. चैधरी के लेख पर आधारित। 24 जनवरी, 2019