रेल विकास प्राधिकरण की आवश्यकता
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सरकार द्वारा रेल विकास प्राधिकरण का गठन आधारभूत संरचना के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। बहुत समय से रेलवे हमारे देश के कोने-कोने को जोड़ रहा है और इस प्रकार यह हमारी अर्थव्यवस्था के चालक की भी भूमिका निभा रहा है। अर्थव्यवस्था में उन्नति के साथ ही इधर से ऊधर यात्रा करने की आवश्यकता बढ़ी है। लेकिन पर्याप्त सुविधाओं का अभाव है। समय की मांग है कि उच्च स्तरीय यात्रा का ऐसा आधुनिक तंत्र उपलब्ध हो, जिसमें दुर्घटनाओं की आशंका कम रहे। साथ ही उद्योगों से माल की आवाजाही में सुगमता आए। इन सब जरुरतों को देखते हुए एक स्वतत्र एवं सशक्त नियामक की आवश्यकता है। प्रस्तावित प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करना होगा कि संसाधनों का सही इस्तेमाल हो।
रेलवे की नीतियां, उनका नियमन और प्रबंधन आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सही प्रकार से इनमें तालमेल न होने से आज हमारे रेल-तंत्र में अनेक खामियां आ गई हैं। अब इसे ठीक करने का दारोमदार प्राधिकरण पर होगा।2014 में गठित राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति के लिए बनी समिति ने पाया कि रेलवे से जुड़े सभी क्रियाकलापों को रेल्वे बोर्ड तक केंद्रीकृत किए जाने से रेलवे को बहुत हानि हुई है। हम सकल घरेलू उत्पाद की दर 7% से ज्यादा रखे जाने की उम्मीद कर रहे हैं। दूसरी ओर, अर्थव्यवस्था की मजबूती ने रेल सेवाओं की बेहतरी की मांग को बढ़ा दिया है। इन सब मसलों के मद्देनज़र प्राधिकरण को सबसे पहले उन क्षेत्रों को चिन्ह्ति करना होगा, जो भाड़े की दर को बढ़ा सकें और लगातार इस उच्च दर को बनाए रखें।
सरकार के लिए इस बात की बहुत बड़ी चुनौती है कि वह बजट से इतर रेलवे में अधिक निवेश कैसे कर सकेगी। इस संदर्भ में विवेक देबराय समिति का मानना है कि रेल्वे में एकाधिकारी ढांचे के कारण निजी क्षेत्र को अभी तक शामिल नहीं किया जा सका है। प्राधिकरण को निजी क्षेत्र को रेलवे में निवेश करने के लिए सुरक्षित और बाधारहित निवेश के लिए वातावरण तैयार करना होगा।रेलवे की यात्री सेवाओं में निजी क्षेत्र को आकर्षित करने की अनेक संभावनाएं हैं। आज रेलवे प्रतिदिन 8000 स्टेशनों पर लगभग 2 करोड़ 30 लाख यात्रियों को भोजन उपलब्ध कराती है। इस क्षेत्र में ऐसी बहुत सी संभावनाएं हैं कि रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ कम कीमत पर उच्च स्तरीय सेवा प्रदान की जा सके।
यात्रा में सुविधाओं के स्तर के अनुरूप भाड़े में वृद्धि करके आमदनी बढ़ाई जा सकती है। विकास करने के लिए यात्रियों और माल; दोनों की ही सुगम एवं तीव्रतर यात्रा को सुनिश्चित करना होगा।यात्रा की गति बढ़ाने की ही दिशा में बड़े शहरों के बीच अत्यंत तीव्र गति से चलने वाली इंटरसिटी की संख्या बढ़ानी होगी। इसके साथ ही सरकार को अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए दूर- दराज के क्षेत्रों में सस्ते किराए वाली पैसेंजर ट्रेन भी चलानी होंगी। भार की क्षमता को बढ़ाने, सेवाओं की आवृत्ति एवं गति को बढ़ाने के लिए रेलवे को अपनी तकनीकों में सुधार करना होगा।
रेलवे में सुधार करना वाकई टेढ़ी खीर है, लेकिन असंभव नहीं। सन् 1990 में यूरोप में जिस प्रकार बुनियादी सुविधाओं को संचालन से अलग करके सुधार करने का प्रयत्न किया गया था, उसे आजमाया जा सकता है। परिवर्तन एकाएक नहीं आता। रेल्वे के संबंध में भी इसे लागू करते हुए क्रमबद्ध विकास-चरण अपनाने होंगे, तभी इसके परिणाम दीर्घकालिक होंगे।
‘द हिंदू‘ के संपादकीय पर आधारित।