राजकोषीय परिषद की सार्थकता है या नहीं ?
Date:31-07-20 To Download Click Here.
महामारी के दौर से आए आर्थिक संकट से उबरने के लए सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि वह अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए अधिक व्यय करे। राजकोषीय अनुशासन को बनाए रखने की दृष्टि से सरकार के लिए ऐसा करना संभव नहीं है। ऐसी ही विकट स्थितियों में सरकार को सहयोग देने के लिए राजकोषीय परिषद के गठन की मांग की जाती रही है।
विदेशों के उदाहरण –
लगभग 50 देशों ने रोजकोषीय परिषद का गठन किया है। यह एक स्थायी एजेंसी है , जो स्वतंत्र रूप से सरकार की राजकोषीय योजनाओं का आकलन करने के लिए जनादेश के साथ काम करती है। इस प्रकार की खुली जांच से सरकार को राजकोषीय मूल्यों के सीधे रास्ते पर रखा जा सकता है।
क्या भारत को परिषद की आवश्यकता है ?
हमारे देश में राजकोषीय उत्तरदायित्व के वहन की समस्या पुरानी है। परन्तु क्या इसके लिए राजकोषीय परिषद का गठन सही समाधान है ?
अगर कुछ पीछे मुड़कर देखें , तो 2003 में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन जैसा कानून लाया गया था। यह सरकार को पूर्व निर्धारित राजकोषीय लक्ष्य , और ऐसा करने में विफलता की स्थिति में , विचलन के कारणों की व्याख्या करने में सहयोग देने के लिए बनाया गया था। इसके साथ ही सरकार को राजकोषीय रणनीति पर वक्तव्य देने की आवश्यकता थी , जो उसके राजकोषीय रूख की जवाबदेही को सुनिश्चित करती। आज तक सरकार के उस रूख पर संसद में कभी गंभीर चर्चा नहीं की गई। अत: सवाल जवाबदेही का है। अगर सरकार उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहती , तो उसके लिए एक स्थायी निकाय बनाकर भी क्या लाभ हो सकता है ?
मान भी लें कि राजकोषीय परिषद बजट के लिए वित्त मंत्रालय को मैक्रोइकॉनॉमिक पूर्वानुमान देती है और इससे मतभेद रखने पर वित्तन मंत्रालय को स्पष्टीकरण देना पड़ता है। फिलहाल जो काम केन्द्री य सांख्यिकीय विभाग और आरबीआई करते हैं , उसे एक स्था़यी परिषद की स्थापना करके , उसे सौंप देने से कोई विशेष परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती।
अगर परिषद व्दारा सरकार पर निगरानी के पक्ष में दलील दी जाए , तो भी यह निरर्थक ही सिद्ध होगा , क्योंकि इसके लिए पहले ही महालेखा नियंत्रक परीक्षक का ऑडिट है।
परिषद के गठन से अगर फिर भी पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद है , तो इसकी शुरूआत छोटे स्तर से की जा सकती है।
- कैग को इस हेतु तीन सदस्यीय समिति बनाने का अधिकार दिया जाए। यह संसद में प्रस्तुत बजट की छानबीन कर सके।
- सरकार के राजकोषीय कदम पर नजर रखे , और एक सार्वजनिक रिपोर्ट प्रस्तुत करे।
- परिषद को कैग ही संसाधन मुहैया कराए।
- इसमें वित्त मंत्रालय , आरबीआई और सांख्यिकी विभाग और नीति आयोग , अपने अधिकारी नियुक्त करें।
- रिपोर्ट देने के बाद परिषद को भंग कर दिया जाए।
इस पद्धति पर परिषद की उपयोगिता को जांचा जाना चाहिए। इसके बाद स्थापना का निर्णय लिया जाना चाहिए।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित डी. सुब्बाराव के लेख पर आधारित। 11 जुलाई 2020