मिट्टी की सेहत का राज

Afeias
25 Nov 2019
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Date:25-11-19

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कृषि क्षेत्र में बढ़ते जलवायु संकट, वनों की कटाई, भूमि में सूक्ष्म तत्वों की कमी आदि से भूमि की सेहत खराब होती जा रही है। भूमि के स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा प्रभाव मशीनीकरण, रासायनिक खाद और कीटनाशकों का बिना सोचे-समझे किये जाने वाले प्रयोग से पड़ रहा है। इससे मिट्टी में जीवाश्म की कमी होती जा रही है। सूक्ष्म-तत्वों के साथ भूमि में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटशियम की बहुत कमी हो गई है।

हाल ही में, मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन किया गया था, जिसमें विशेषज्ञों ने कुछ तथ्य सामने रखे हैं।

  • देश की 95 प्रतिशत खेती योग्य भूमि में नाइट्रोजन सामान्य से कम है। 90 प्रतिशत भूमि में फास्फोरस, और 55 प्रतिशत भूमि में पोटाश की कमी है।
  • पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में फसलों के अत्यधिक उत्पादन और जैविक खाद के कम प्रयोग से मिट्टी में जैव कार्बन की कमी हो गई है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर रासायनिक खाद का प्रयोग औसतन 134 किलो है, जबकि कुछ जिलों में यह 300 से 400 किलो तक है।
    कीटनाशकों के बेतहाशा प्रयोग से भी मिट्टी के जीवाश्म खत्म हो रहे हैं। ये सूक्ष्म-तत्व भूमि की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होते हैं। इनकी कमी से भूमि की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि फसलों में लगने वाले कीड़े और रोग के बीच का अंतर, किसानों को समझाना जरूरी है।
  • इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट के जरिए कीटनाशकों का संतुलित प्रयोग किए जाने की आवश्यकता है।

2015 से ही प्रधानमंत्री परंपरागत और जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कह रहे हैं। इसके लिए जैविक और रासायनिक खाद के प्रयोग में संतुलन बनाने से ही कृषि के विकास को बनाए रखा जा सकता है।

समाचार पत्रों पर आधारित।

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