पर्सनल लॉ में कानूनी बहुलवाद

Afeias
22 Nov 2019
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Date:22-11-19

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समान नागरिक संहिता या सामान आचार संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष कानून होता है, जो सभी धर्म के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। विश्व के अधिकतर देशों में इस प्रकार का कानून लागू है। समान नागरिकाता कानून के तीन स्तर होते हैं –

  1. व्यक्तिगत
  2. संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन का अधिकार तथा
  3. विवाह, तलाक और गोद लेना।

भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का उल्लेख है। इसमें नीति निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। हमारा संविधान इस प्रकार के कानून को सुनिश्चित करने के प्रति नागरिकों को प्रतिबद्धता व्यक्त करने को निर्देश देता है। परंतु इसे अभी तक पूरे देश में लागू नहीं किया जा सका है। गोवा एकमात्र ऐसा राज्य हैं, जहां यह लागू है।

वर्तमान चर्चा –

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने जोस पाओलो बनाम मारिया के मामले को लेकर समान नागरिक संहिता पर एक बार फिर से बहस छेड़ दी है। इस मामले को लेकर न्यायालय ने गोवा का उदाहरण दिया है।

गोवा का कानून क्या कहता है ?

गोवा में इसे पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867 के नाम से जाना जाता है। यह पुर्तगालियों की देन है, ईश्वर एवं पुर्तगाली राजा के नाम पर बनाया गया है। इस कानून के अनुसार –

  1. लैंगिक न्याय के लिए समानता की शर्त की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
  2. हिंदुओं को बहु-विवाह का सीमित और सशर्त अधिकार दिया गया है।
  3. कानून में कैथोलिकों को भी कई छूट दी गई हैं।
  4. राज्य में पंजीकृत विवाह वाला मुसलमान व्यक्ति बहु-विवाह कर सकता है। वे गोवा के पुर्तगाली और शास्त्रिक हिंदू कानून के अंतर्गत आते हैं।
  5. विवाहित दंपति का संपत्ति पर समान अधिकार है। हालांकि बहुत से मामलों में पत्नी को संपत्ति का अधिकार छोड़ने पर मजबूर कर दिया जाता है।

हिंदू पर्सनल लॉ

हिंदू, सिक्ख, जैन और बौद्ध समुदाय पर  लागू होने वाले इस कानून को 1956 में संहिताबद्ध किया गया था। इसके अंतर्गत निम्न कानून आते हैं –

  1. हिंदू विवाह कानून, 1955
  2. हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956
  3. हिंदू अल्पसंख्यक एवं अभिभावकत्व कानून, अधिनियम 1956
  4. हिन्दू दत्तक एवं भरण पोषण कानून, 1956

मुस्लिम पर्सनल लॉ

1937 का शरिया कानून ही इस समुदाय का आधार है।

समान नागरिक संहिता से जुड़े अन्य मामले

  1. 1985 में मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो।

उच्चतम न्यायालय ने पहली बार समान नागरिक कानून के निर्माण के निर्देश दिए थे।

सरकार ने मुस्लिम महिला कानून 1986 के आधार पर शाह बानो के दावे को खारिज किया था।

  1. 2017 का शायरा बानो बनाम भारत संघ

उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक को गैर कानूनी बताते हुए समान नागरिक संहिता बनाये जाने गठन के निर्देश दिए थे।

  1. 1995 का सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में एक हिंदू व्यक्ति ने बहु विवाह हेतु मुस्लिम धर्म अपना लिया था। न्यायालय ने इसकी आलोचना करते हुए एक राष्ट्र-एक कानून की स्थापना पर बल दिया था।

एक राष्ट्र-एक कानून, उचित या अनुचित ?

पर्सनल लॉ, संविधान की समवर्ती सूची में है। इसलिए राज्यों के अनुसार इनमें भिन्नता है। इससे स्पष्ट होता है कि संविधान निर्माताओं ने भी पूरे देश में एक सा कानून लागू करना उचित नहीं समझा था।

राज्यों ने भारतीय दंड संहिता और आपराधिक कानून में अनेक संशोधन किए हैं। हाल ही में मोटर वाहन कानून के अंतर्गत लगाए गए दण्ड में गुजरात सरकार ने कमी की है।

पूरे देश के हिंदू भी एक ही कानून के अधीन नहीं हैं। 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम में निकट संबंधी से विवाह का प्रावधान नहीं है। परंतु दक्षिण भारत के लिए यह लागू नहीं होता। मुसलमानों और ईसाईयों के पर्सनल लॉ भी पूरे देश में समान नहीं हैं। नागालैण्ड, मेघालय और मिजोरम के स्थानीय रिवाजों को संविधान ने अलग पहचान और संरक्षण दिया है।

अगर पर्सनल लॉ को छोड़ भी दें, तो 1950 का भूमि अधिनियम ही असमानता पर आधरित है।

फिलहाल समान आचार संहिता का कोई ब्लूप्रिंट तैयार नहीं किया जा सका है। न ही कोई विशेषज्ञ समिति बनाई गई है। अगर इस दिशा में कोई कदम आगे बढ़ाया भी जाए, तो क्या हिंदू कन्यादान आदि रस्मों को छोडने को तैयार होगी या निकाहनामा जैसी रस्मों को अपनाने को तैयार होगी ? यही स्थिति अन्य धर्मों के संदर्भ में भी आ सकती है।

गत वर्ष, विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता की आवश्यकता से ही इंकार कर दिया था। अगर इसे लागू करना ही पड़े, तो खंड-खंड में लागू किया जाना चाहिए।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित फैज़ान मुस्तफा के लेख पर आधारित। 30 अक्टूबर, 2019

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