महाराष्ट्र में सूखा
Date: 02-05-16
आज देश के 256 जिलों के लगभग 33 करोड़ लोग सूखे की समस्या से ग्रस्त हैं। किन्तु महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में यह संकट कुछ ज्यादा ही गहरा गया है। आखिर ऐसा क्यों है? यदि इसके कारणों पर ध्यान दें, तो पता चलता है कि-
- महाराष्ट्र में केवल 4 प्रतिशत भूमि पर ही गन्ने की खेती की जाती है, जबकि इस 4 प्रतिशत भूमि के लिए राज्य का लगभग 70 प्रतिशत पानी लग जाता है।
- गन्ने की पारंपरिक तरीके से की जाने वाली खेती में 2000 मि.मि. से अधिक पानी की खपत हो जाती है, जबकि मराठवाड़ा में औसत वर्षा 8276 मि.मि. के लगभग होती है।
- गौर करने की बात यह भी है कि अधिकतर चीनी मिलों के स्वामी राजनेता हैं। इसलिए सरकार के लिए इन मिलों को बंद कर पाना अथवा अन्य कानूनी प्रतिबंध लगा पाना संभव नहीं हो पाता।
- हालांकि पानी की इस समस्या से निपटने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने नई चीनी मिल खोलने पर पाँच वर्ष तक की रोक लगा दी है। लेकिन समस्या का समाधान इससे होता दिखाई नहीं देता। जो मिलें पहले से चल रही हैं, वे तो पानी उतना ही खर्च करती रहेंगी और स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहेगी। साथ ही नई चीनी मिलें भी लगातार खुलती जा रही हैं।
समाधान-
- महाराष्ट्र सरकार को चाहिए कि वह नहरों के पानी का बटवारा बिना किसी सब्सिडी के प्रति हैक्टेयर के हिसाब से सही रूप में करे। इससे निष्चित ही किसान गन्ने के अलावा बाजार की मांग के अनुरूप अन्य फसलें उगाने का निर्णय ले सकेंगे।
- सरकार किसानों को ऐसी फसल उगाने को बढ़ावा दे, जिनमें पानी की खपत कम हो।
- सरकार गन्ने की फसल पर दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करे। यह सब्सिडी किसान को गन्ने की फसल उगाने के लिए आकर्षित करती है। अन्यथा वे दाल, तिलहन कपास आदि की खेती को भी अपना सकते हैं।
- किसान गन्ने की खेती को ड्रिप एरीगेशन तकनीक के जरिए जारी रख सकते हैं, जिसमें लगभग 1000 मि.मि. पानी से काम चल सकता है
- लगातार दो वर्षों से खराब मानसून के कारण से मराठवाड़ा में 1000 मि.मि. पानी की उम्मीद रखना भी ठीक नहीं है। अच्छा यही होगा कि सरकार गन्ने की खेती के लिए बिजली और पानी के एकतरफा वितरण को समाप्त करे, जिससे वहाँ की मिलें उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ स्थानांतरित हो जाएं और मराठवाड़ा का किसान अपनी फायदे की खेती कर सके।यहाँ ध्यान देने की बात है कि हांलाकि गन्ने की खेती के मामले में उ.प्र. देश का सबसे बड़ा राज्य है। लेकिन वहाँ इस तरह का जल संकट उपस्थित नही होता। इसका मूल कारण है-उ.प्र. में नदियों का फैला हुआ संजाल, जिससे जमीन में पानी लगातार पहुँचता रहता है। साथ ही वहाँ की मिट्टी जलोढ़ है, जो अपेक्षाकृत कम पानी मांगती है।
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