भूमि सुधार से समृद्धि तक

Afeias
01 Jul 2019
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Date:01-07-19

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हमारे देश के कृषक परिवारों को आरामदायक गुजर-बसर के लिए मात्र 1.5 लाख रु. की वार्षिक आय की आवश्यकता होती है। इसके लिए थोड़े से कठिन परिश्रम, जिससे उन्हें कोई परहेज नहीं,  और कुछ साधनों की आवश्यकता होगी। ये साधन लगभग 2 लाख के निवेश की मांग करते हैं, जो कृषकों के पास नहीं है। इसका कारण यह है कि औसत कृषक परिवारों के पास भू-स्वामित्व नहीं है।

कानूनी रूप से भारत के कृषकों के पास भूमि दस्तावेजों के नाम पर मामूली कागजात हैं। बैंकों से अतिरिक्त ऋण लेने के लिए ये दस्तावेज काफी नहीं होते। इसके कारण भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने में केवल 3% भूमि की ही गिनती की जा सकती है।

इससे अलग अमेरिका में 40% भूमि पूँजी की श्रेणी में आती है। इसके कारण अमेरिका को विश्व की श्रेष्ठतम अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है।

     भारत में इस संकट का निदान तीन सरल बिंदुओं से किया जा सकता है।

  1. देश में पटवारियों द्वारा उपलब्ध विवरण को जीपीएस आधारित सीमाओं में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
  2. भू-स्वामित्व के अधिकार की गारंटी सरकार को ले लेनी चाहिए। इससे सामान्य रूप से पंजीकृत किए जाने वाले दस्तावेज की जगह गारंटी वाला भू-स्वामित्व अधिकार मान्य हो जाएगा।
  3. संपत्ती संबंधी दस्तावेजों की सुरक्षा के लिए इन्हें एक डीमैट फॉर्म में रखा जाना चाहिए। इस प्रकार का पंजीकरण डिजीटल, पारदर्शी और विश्वसनीय होना चाहिए, ताकि बैंक और न्यायालय इस पर भरोसा कर सकें।

    अगर ये तीन परिवर्तन अमल में लाए जा सके, जो एक दशक में ही भारत की पूंजी 4 खरब डॉलर बढ़ जाएगी।

  • लगभग 15 करोड़ कृषक परिवार गरीबी रेखा से ऊपर आ जाएंगे।
  • 10 करोड़ सूक्ष्म व लघु व्यवसाय गति पा सकेंगे। इसमें लाखों लोगों को रोजगार मिल सकेगा।
  • सशक्त और आर्थिक रूप से मजबूत सरकार के साथ अनेक स्टार्टअप और बड़े उद्यम वैश्विक उद्योग में अपने पांव जमा सकेंगे।
  • पूँजी के भण्डार से देश की विकास दर 2% बढ़ सकेगी।

भारत की समृद्धि का द्वार, अपने कृषकों को ठोस भू-स्वामित्व प्रदान करके ही खोला जा सकता है। स्वतंत्रता के 70 वर्षों के बाद भूमि स्वराज को अपनाकर ही पूर्ण स्वराज पाया जा सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित अध्र्य सेनगुप्ता और ललितेश कटरा गड्डा के लेख पर आधारित। 10 जून, 2019

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