भारत की मुख्य समस्याओं की समीक्षा

Afeias
15 Jan 2019
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Date:15-01-19

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हाल ही में पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान कृषि एवं रोजगार संकट ही दो ऐसे मुद्दे रहे, जो प्रमुख थे। भारत के राजनीतिक परिदृश्य में समय-समय पर ये विषय छाए रहे हैं। इसका कारण यही है कि इन समस्याओं का कोई दीर्घकालीन समाधान नहीं ढूंढा जा सका है।

मामले पर रघुराम राजन और विश्व मुद्रा बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ सहित 13 अर्थशास्त्रियों ने विचार-विमर्श किया है। चुनाव के दौरान पार्टियों के घोषणा पत्र में कृषि ऋण माफी के ऐलान को सभी ने सिरे से खारिज करते हुए इसे अस्थायी समाधान मात्र बताया है।

  • किसानों की समस्या का हल कृषि ऋण माफी न होकर, तेलंगाना राज्य द्वारा ‘रायरु बंधु’ जैसी योजनाओं की पहल हो सकता है। देश में अपनी तरह का यह पहला प्रयास है। इस योजना में राज्य के लगभग 58 लाख किसानों को फसल निवेश सहयोग राशि के रूप में प्रति एकड़ 5 हजार रुपये दिए जाएंगे। इस प्रकार की योजनाओं को अन्य राज्यों में भी लागू करने की अनुशंसा की जा रही है।

कृषि क्षेत्र में मध्यस्थ या दलाल की भूमिका को समाप्त करने का प्रयास किए जाने पर भी जोर दिया गया है। साथ ही वितरण प्रणाली में आने वाली बाधाओं को दूर किए जाने की भी बात कही गई है।

  • युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में भारत आज चैराहे पर खड़ा है। इस मामले में दो तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। (1) श्रम अनुबंधों को लचीला बनाया जाए। ऐसा करने से चीन-अमेरिका के व्यापार युद्ध से भटकी हुई कंपनियां, भारत में निवेश के बारे में उत्सुक होंगी। (2) भारत सरकार, शिक्षा की गुणवत्ता की गंभीरता से लेते हुए उसमें सुधार करे।

पर्यावरणीय प्रदूषण और स्वास्थ्य, दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्होंने भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता को काफी नुकसान पहुँचाया है। परन्तु राजनीतिक दलों ने इन्हें दरकिनार कर रखा है। इन क्षेत्रों में जल्द-से जल्द सुधार किए जाने की आवश्यकता है, ताकि आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर देशवासी कुछ सार्थक आर्थिक दांव पेंचों की उम्मीद कर सकें। कहीं ऐसा न हो कि राजनीतिक दलों की आर्थिक नीतियों में भिन्नता के चलते रोजगार संकट एक सामाजिक संकट बन जाए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 17 दिसम्बर, 2018

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