भारत-अफ्रीका संबंध-नए सोपान

Afeias
25 Jul 2016
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Date: 25-07-16

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प्रधानमंत्री श्री मोदी की 7-11 जुलाई तक की अफ्रीकी देशों की यात्रा ऐतिहासिक सिद्ध हुई है।

इनमें मोजाम्बिक और केन्या ऐसे देश रहे, जहाँ 1981-82 के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गय थे। अफ्रीका के इस दौरे से भारत-अफ्रीका के द्विपक्षीय संबंधों का दूरगामी प्रभाव भारत की राजनीतिक, आर्थिक एवं उदार शक्ति के रूप में उभरने के मंसूबों पर पड़ेगा। इन देशों की यात्रा से प्रधानमंत्री ने इन देशों के महत्व को वास्तविक रूप में स्वीकारा है।

यात्रा के दूरगामी प्रभाव

पश्चिमी तट की सुरक्षा में बढ़ोत्तरी

  • अफ्रीका के दक्षिण-पूर्व में बसे चार देशों की यात्रा के पीछे सोची-समझी रणनीति रही है। इन देशों की सीमा से हिन्द महासागर क्षेत्र मिलता है (IOR-Ocean region) । अफ्रीका के इन पूर्वी तटों से लगे महासागर-क्षेत्र में भारत को अपनी नौसैनिक एवं व्यापारिक गतिविधियों के लिए दृृढ़ सुरक्षा की आवश्यकता है। सुरक्षा और शांति के लिए अफ्रीकीय देशों के सहयोग की आवश्यकता होगी।

इन्ही मुद्दों को ध्यान में रखकर सन् 2015 में वर्तमान सरकार ने मोजाम्बिक से बातचीत आरंभ की थी।

  • प्रधानमंत्री की चलाई गई ‘सागर माला’ योजना अति आधुनिक है, जिससे तटीय क्षेत्रों का निकास, बंदरगाहों की बुनियादी सुविधाओं का विकास तथा समुद्र आधारित उद्योगों का विकास केवल आंतरिक पक्ष के लिए ही नहीं है, बल्कि इसकी रणनीति अफ्रीका के पूर्वी तटों पर सुरक्षा से भी जुड़ी हुई है।
  • इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री ने कुछ समय पहले दो अफ्रीकी द्वीपों की भी यात्रा की थी। अब पूर्वी अफ्रीका के देशों की इस अपनत्वपूर्ण यात्रा से प्रधानमंत्री ने उनमें भारत के प्रति विश्वास जगाया है और संवेदनशील तकनीकों के आदान-प्रदान पर मुहर लगाकर अफ्रीकी देशों के प्रति भारत के विश्वास को स्थापित कर दिया है।

यात्रा का आर्थिक पक्ष

  • यात्रा का उद्देश्य अफ्रीकी देशों से आर्थिक संबंधों को मजबूत करना रहा। अफ्रीकी देशों के निवासी भारत के ‘मेक-इन-इंडिया’ मिशन के बारे में जानने को काफी उत्सुक थे।
  • चीन के आर्थिक विकास की धीमी दर के कारण अफ्रीका की खानों से निकलने वाले खनिजों की वहाँ बहुत ज्यादा खपत नहीं है। अफ्रीकी देश किसी ऐसी एशियाई शक्ति की खोज में थे, जहाँ से उन्हें अपने निर्यात का अच्छा मूल्य मिल सके और उनके उद्योगों को बढ़ावा भी मिले। अफ्रीका के लिए भारत ऐसे देश के रूप में ऊभरा है जिसे वे अपने प्रजातंत्रीय साझेदार के रूप में देख सकते हैं।
  • प्रधानमंत्री ने अफ्रीकी देशों से कृषि संबंधी समझौते भी किए हैं। भारत के लिए दालों का उत्पादन कुछ हद तक अफ्रीकी देश करेंगे, जिससे दोनों पक्षों में खाद्य-सुरक्षा बढ़ेगी।
  • ऊर्जा के नवीन स्त्रोतों की खोज की जा सकेगी।
  • अफ्रीकी देशों में कुछ समूहों की यह अवधारणा रही थी कि ‘भारत भी चीन की तरह अफ्रीका की प्राकृतिक संपदा का दोहन करेगा।’ अतः हमारे प्रधानमंत्री ने अपनी यात्रा से पूर्व ही यह संदेश दे दिया था कि ‘हम विकास में साझेदारी चाहते हैं।’
  • प्रधानमंत्री ने अपने निर्यात उद्योगों का भविष्य अफ्रीकी बाजारों में दिखाकर यह सिद्ध कर दिया कि भारत और अफ्रीका कई पक्षों में एक-दूसरे पर आश्रित हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि अफ्रीकी देशों में बढ़ती क्रय क्षमता से भारत के साथ होने वाला व्यापार 72 अरब डॉलर से बढ़कर 700 अरब डॉलर तक हो सकता है।

 

दि हिन्दूमें प्रकाशित लेखों पर आधारित