भारतीय चिकित्सको की रिश्वतखोरी

Afeias
11 May 2016
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Date: 11-05-16

character-doctorचिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सक जिस तरह से दवाई निर्माता कंपनियों से रिश्वत लेकर उन्हीं की दवाइयाँ लिखने को अपना लक्ष्य बना लेते हैं, इससे सभी वाकिफ हैं।
उपहार, अच्छे हॉलीडे पैकेज टूर तथा कमीशन लेना किसी भी चिकित्सक के लिए अवैध माना गया है। मेडिकल कांउसिल ने तो यह भी कहा है कि ‘‘किसी भी चिकित्सक को आर्थिक लाभ के लिए मरीज के रोग के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।’’

नैतिकता तो यही कहती है कि एक चिकित्सक का पहला कर्तव्य रोगी के रोग का इलाज करना है, न कि उसके पीछे छिपे आर्थिक लाभ का आंकलन करना। सन् 2009 के वल्र्ड मेडिकल एसोसिएशन के नैतिक सिद्धांतों में भी कहा गया है कि ‘‘रोगी अपनी पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए चिकित्सक के पास आता है। वह उस पर पूर्ण विश्वास करता है कि वह उसको ठीक कर देगा। इसलिए एक चिकित्सक का दायित्व है कि वह रोगी के लिए दया-भावना रखे।’’

सच यह है कि भारतीय चिकित्सा परिषद बहुत ही लचर है और यही वजह है कि स्वास्थ्य सेवाओं में इतना भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। चिकित्सकों पर प्रतिबंध लगाने की दृष्टि से मेडिकल कांऊसिल ने अपने नैतिक सिद्धांतों में सुधार करके अकेले चित्सिक को तो दवाई-निर्माता कंपनियों से आर्थिक लाभ लेने से रोक दिया है। लेकिन यदि चिकित्सक सात के समूह में या उनका एसोसिएशन कोई उपहार या आर्थिक लाभ लेना चाहे, तो ले सकते हैं। इस घोषणा के बाद से चित्सिकों की सोसायटी, फांऊडेशन और एसोसिएशन की संख्या में एकदम से बहुत बढ़ोत्ती हो गई है।

मेडिकल कांऊसिल के इस कदम पर स्वास्थ्य सेवाओं पर बनी संसदीय समिति ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि ‘ऐसा लग रहा है कि भारतीय मेडिकल कांऊसिल निजी कंपनियों के हाथ का खिलौना बन गयी है।’

नतीजा यह हो रहा है कि भारत और अमेरिका; दोनों ही देशों के चिकित्सकों पर हमले सबसे अधिक हो रहे हैं। इन दोनों ही देशों की स्वास्थ्य सेवाओं पर निजी कंपनियों का बहुत दबदबा है।

संसदीय समिति को चाहिए कि वह सभी स्वास्थ्य ऐसा संस्थानों, समितियों और एसोसिएशन के लिए बनाए गए नैतिकता के सिद्धांतों पर कड़ाई से अमल कराए। साथ ही मेडिकल कांउसिल भी अपने नियमों को बेहतर बनाए और स्वास्थ्य सेवाओं पर कड़ी निगरानी रखे।

गौर करने की बात है कि सर्वोच्च न्यायालय तक ने 2 मई 2016 को एक सुनवाई के दौरान भारतीय चिकित्सा परिषद को अत्यंत लचर व्यक्त किया है।

‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ के
एक लेख पर आधारित