भारतीय स्वास्थ जगत का रूपातंरण होना चाहिए

Afeias
04 Jul 2019
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Date:04-07-19

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विश्व स्वास्थ संगठन की वैश्विक स्वास्थ्य प्रणालियों की सूची में भारत को 112वां स्थान दिया गया है। भारत के लिए यह अत्यंत शर्मनाक स्थिति है। इसका मूल कारण चिकित्सकों की कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार ताल्लुका और जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में बदल रही है। इसे तार्किक तो कहा जा सकता है, परंतु व्यावहारिक नहीं, क्योंकि अधिकांश राज्य सरकारें इनका खर्च वहन नहीं कर सकतीं।

अमेरिका और ब्रिटेन में भी एक समय पर यह एक समस्या थी। उनकी तर्ज पर हमें भी आधुनिक शिक्षण प्रणाली को प्रॉब्लम बेस्ड लर्निंग पर आधारित करके अच्छे चिकित्सकों की कमी को पूरा कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त कई अन्य तरीके भी हैं, जिन्हें अपनाकर समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है।

  • भारत में 330 ऐसे निजी और ट्रस्ट के अस्पताल हैं, जहाँ राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड द्वारा संचालित स्नातकोत्तर चिकित्सकीय परीक्षा में पास चिकित्सकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इन अस्पतालों में देश के कई श्रेष्ठ चिकित्सक काम करते हैं। अतः इन पर मरीजों का भार बहुत अधिक होता है। अगर इन अस्पतालों में स्नातक स्तर की 100 सीटें भी बढ़ा दी जाएं, तो देश को 30000 अधिक चिकित्सक प्रतिवर्ष मिल सकेंगे।
  • अमेरिका के प्रॉब्लम बेस्ड लर्निंग कार्यक्रम में शिक्षक की भूमिका विद्यार्थी को सहयोग, निर्देशन और निरीक्षण के जरिए प्रशिक्षित करने की होती है। केवल लेक्चर के माध्यम से शिक्षा नहीं दी जाती। विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने भी इसी पद्धति को अपनाया है। इस पद्धति से बेहतर चिकित्सक तैयार किए जा सकते हैं।
  • 300 बिस्तर वाले बड़े अस्पतालों में 100 मेडिकल सीटें रखे जाने के साथ ही यहाँ 8 या अधिक वर्षों से कार्यरत चिकित्सकों को एक शिक्षण कोर्स के साथ ही शिक्षक की तरह तैनात किया जा सकता है।

सरकार की ओर से गठित एक समिति मेडिकल कॉलेज की प्रबंधन समिति की सम्मति से कोर्स की फीस तय कर सकती है। पाँच से छः साल के कोर्स की फीस लगभग 25 लाख आनी चाहिए।

हमारी सरकार को अभी एम्स में एक चिकित्सक को तैयार करने में 1.5 करोड़ और आर्मी अस्पताल में 48 लाख का खर्च उठाना पड़ता है।

  • नए मॉडल के मेडिकल स्कूल मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं हैं। इनसे निकले चिकित्सकों को विदेशी मेडिकल संस्थानों से पास विद्यार्थियों की तरह ही एक्जिट परीक्षा देनी होगी। न्यू मॉडल संस्थानों में विद्यार्थियों को अमेरिका और ब्रिटेन की परीक्षाओं के लिए भी तैयार किया जाए।

देश में चल रहे मेडिकल कॉलेजों के साथ अगर नए मॉडल के कॉलेज भी चल जाएं, तो भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में उत्कृष्टता आ जाएगी। मेडिकल कॉलेज तो प्रतिवर्ष अनेक डॉक्टर उपलब्ध करा ही रहे हैं। एक्ज्टि परीक्षा को पास करके आने वाले डॉक्टर विश्व स्तरीय होंगे, जो चिकित्सकों की कमी को पूरा करने के साथ-साथ देश का नाम आगे ले जाएंगे।

विश्व के अधिकांश देशों में प्रॉब्लम बेस्ड लर्निंग चल रही है। कुछ समय पूर्व मलेशिया में भी चिकित्सकों की भारी कमी थी। उसने बेंगलूरू के एक मेडिकल कॉलेज से समझौता करके अनेक मलेशियाई लोगों को प्रशिक्षित करवाया। हमारे मेडिकल संस्थान भारतीय नागरिकों को शिक्षा देने से नहीं कतराएंगे। जरूरत इस बात की है कि सरकार इस प्रकार की पहल करे।

विश्व में 8.2 खरब डॉलर के साथ स्वास्थ क्षेत्र सबसे बड़ा उद्योग बन चुका है। अगर भारत अच्छे और ज्यादा चिकित्सकों को तैयार करने में सफल हो जाता है, तो वह इस क्षेत्र में विश्व में अपने पांव जमा सकेगा।

द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित देवी शेट्टी के लेख पर आधारित। 14 जून, 2019

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