भविष्य के लिए एक सोच

Afeias
16 Dec 2019
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Date:16-12-19

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भारत में पोषण की स्थिति काफी खराब है। वैश्विक सूचकांक के 119 देशों में भारत का स्थान 103वां है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में हर वर्ष कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है। दक्षिण एशियाई देशों में भारत के आंकड़े सबसे खराब हैं।

कुपोषण के मामले न केवल गरीब और वंचित व पिछड़े वर्ग में मिलते हैं, बल्कि समृद्ध परिवारों में भी यह चिंताजनक स्थिति में है। अक्सर देखा जाता है कि पोषण की स्थिति को ठीक करने के लिए मांसाहार को खानपान में अपनाने की सलाह दे दी जाती है।

क्या हम जानते हैं कि पशुपालन और पोल्ट्री को भोजन का हिस्सा बनाने में हम कितना पानी बर्बाद कर देते हैं? पशुपालन और बेतहाशा जल की मांग रखने वाली नकद फसलों से हमारे पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ? दरअसल भारत को एक ऐसे समग्र दृष्टिकोण की जरूरत है, जिसमें किफायती दरों पर पर्याप्त पोषण मिल सके, व्यावसायिक रूप से लाभकारी कृषि हो, जो पर्यावरण को स्वच्छ रखते हुए प्राकृतिक संसाधनों पर कम से कम प्रभाव डाले।

कुछ तथ्य

  • जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े कारण में से उद्योगों को एक कारण माना जाता है। सच्चाई यह है कि पशुपालन और भोजन के रूप में पशुओं की फार्मिंग, पूरे विश्व के वाहनों की अपेक्षा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण हैं।

          यूरोप में तो पशुओं को पालने को प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण माना गया है।

  • किसानों को फसलों के विवेकपूर्ण चुनाव के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। भारत सरकार के अच्छे न्यूनतम समर्थन मूल्य के आश्वासन पर 12 करोड़ टन धान की पैदावार की जाती है। जबकि एक कि.ग्रा. चावल के उत्पाद में तीन से पाँच हजार लिटर पानी लगता है। गेहूं, कपास, गन्ने आदि की फसलों में भी पानी की बहुत खपत होती है।

दूसरी ओर ज्वार, बाजरा, रागी जैसी फसलों में पानी बहुत कम लगता है। पोषण की दृष्टि से ये कहीं ज्यादा अच्छी ठहरती हैं। प्रोटीन से संपन्न होने के साथ-साथ ये फसलें पानी की अधिक मांग रखने वाली फसलों की तुलना में धारणीय विकल्प हैं।

  • विकास, जलवायु परिवर्तन और किसानों के कल्याण की दृष्टि से हमें एक नई हरित क्रांति की जरूरत है। इस नई क्रांति के साथ ही कृषकों को कम जल की मांग रखने वाली फसलों के लिए प्रोत्साहित करना होगा। साथ ही उनकी आय की सुरक्षा को भी बनाए रखना होगा।

सरकार से उम्मीद की जा सकती है कि वह इन बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियां तय करे।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित पूनम महाजन के लेख पर आधारित। 14 नवम्बर, 2019