बाढ़ प्रशासन: नगरों की समस्याएं

Afeias
20 Sep 2017
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Date:20-09-17

 

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इस वर्ष की बाढ़ पूरे दशक में सबसे भयंकर रही है। इसने 280 जिलों के 3.4 करोड़ लोगों के जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया और लगभग 1000 लोगों की जान ले ली। इतना ही नही, बाढ़ के कारण 3 लाख हेक्टेयर की फसल, 8 लाख से अधिक घर और 1600 से अधिक स्कूल बर्बाद हो गए। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाढ़ के कारण 7 अरब रुपयों से ज्यादा का नुकसान हुआ है।

शहरी क्षेत्रों की बाढ की समस्या चुनौतीपूर्ण है। देश की व्यावसायिक राजधानी माने जाने वाले मुंबई में इस वर्ष आई बाढ़ ने आर्थिक नुकसान के साथ-साथ पूरे महानगर के जीवन को ठप्प सा कर दिया। मुंबई के अलावा भी भारत के कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, गुरूग्राम तथा बेंगलुरू जैसे बड़े शहर हर वर्ष पानी के जमा होने के कारण बाढ़ जैसी समस्या से पीड़ित हो जाते हैं।

  • कारण
    • अनियोजित शहरी विकास के कारण नगरों में बाढ़ जैसी समस्या उत्पन्न होने लगती है। रियल एस्टेट की मनमानी, खराब नगर योजना, सरकारी एवं राजनीतिक स्तर पर जबावदेही की कमी के कारण समस्या विकराल बन जाती है।
    • शहरों में दलदली भूमि, वैटलैण्ड, तालाब एवं नदियों से जल निकासी की लगातार कमी होती जा रही है। बाढ़ की संभावना वाले क्षेत्रों में अतिक्रमण, गैर-कानूनी निर्माण एवं नगरों के हरित क्षेत्रों में लगातार आने वाली कमी से यहाँ आने वाली बाढ़ को नियंत्रित करना असंभव सा हो गया है।
    • बेंगलुरू शहर में कभी 2500 सरोवर थे। ये सभी आपस में एक-दूसरे से जुड़े होने के कारण निकास प्रणाली का अद्भुत उदाहरण थे। एक सरोवर के भरने पर अतिरिक्त जल अपने आप दूसरे सरोवर में चला जाता था। अतिक्रमण और ठोस कचरे के कारण अब पानी के बहाव के स्रोत बंद हो गए हैं। इसके कारण बाढ़ आती है।
    • हैदराबाद जैसे शहर में भी 375 सरोवरों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। दिल्ली के 611 जल निकायों में से 274 सूख चुके हैं। गुरुग्राम जैसे औद्योगिक शहर के कई हिस्से जल निकासी तंत्र से ही नहीं जुड़े हैं। यही कारण है कि वर्षा के मौसम की एक बारिश में ही सारी सड़कें डूबी हुई दिखाई देती हैं।
  • समाधान
    • शहरी बाढ़ से निपटने के लिए नगर-निगमों को सक्रियता दिखानी होगी। भूमि के उपयोग एवं निर्माण कार्यों के लिए बेहतर नियोजन पर ध्यान देना होगा। भारत के किसी भी शहर में शायद ही ऐसा जल-निकासी तंत्र है, जो कम समय में होने वाली अधिक बारिश से निपट सके।
    • बुनियादी ढांचों के लिए आवंटित बजट की पर्याप्त रकम सड़क, नालों जैसे बुनियादी ढांचों के लिए शत-प्रतिशत उपयोग में लाई जाए।
    • भारतीय नगरों के साथ बहुत बड़ी विडंबना यह है कि वे मानसून में तो बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं, जबकि गर्मियों में पानी की कमी से जूझते हैं। इन नगरों में बाढ़ के पानी को भू-जल एवं सतही जल के रूप में एकत्रित करने के तंत्र विकसित किए जाएं। इससे शहरों में पूरे साल जल-सुरक्षा बनी रह सकती है। साथ ही बाढ़ समस्या भी नियंत्रित रहेगी।

 सिंगापुर ने बेहतर जल निकासी तंत्र और वर्षा जल के भंडारण के अच्छे उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। हमारे नेताओं को चाहिए कि वे बाढ़ का ठीकरा जलवायु परिवर्तन के सिर फोड़ना बंद करें और नगरों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए बेहतर योजनाएं बनाएं।

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित असित के. विश्वास, उदिशा सकलानी और सिसिलिया टोर्टजादा के लेख पर आधारित।