बजट में पोषण अभियान

Afeias
25 Feb 2020
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Date:25-02-20

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वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति अत्यंत दयनीय है। भारत को धारणीय विकास लक्ष्य 2 में 2030 तक ‘जीरो हंगर‘ के लक्ष्य को भी प्राप्त करना है। इन स्थितियों को देखते हुए केंद्रीय बजट में भी इसे लक्षित किया गया। प्रधानमंत्री के पोषण अभियान कार्यक्रम के द्वारा 10 करोड़ घरों को पर्याप्त पोषण उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।

कुपोषण के तीन आयाम हैं –

1) कैलोरी की कमी एकीकृत बाल विकास सेवा योजना में बच्चों, गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं, किशोरियों आदि को स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा तथा सहायक पोषक तत्व दिए गए। इनके नियमित स्वास्थ्य चेकअप किए गए।

इस कार्यक्रम द्वारा पूर्व में आवंटित निधि का उचित उपयोग न होने से वर्तमान वित्तीय वर्ष में इसे मामूली रूप से कम रखा गया है। इसका मुख्य कारण योजना के कार्यान्वयन का ठीक न होना रहा, जिसकी वजह से निधि का संपूर्ण उपयोग नहीं किया जा सका।

कैलोरी की कमी को दूर करने का दूसरा उपाय मध्यान्ह भोजन के रूप में किया गया।

2) प्रोटीन की कमी – मध्यान्ह भोजन में दाल जैसे प्रोटीन युक्त आहार का उपयोग बढ़ाया गया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अभी तक गेहूं और चावल जैसे अनाजों की प्रमुखता रखी गई थी। इसके स्थान पर स्थानीय रूप से पैदा होने वाले और प्रोटीन की अधिकता वाले ज्वार, बाजरा, रागी जैसे अनाजों को इसमें शामिल किया गया है।

3) माइक्रोन्यूट्रियेन्टस की कमी – मृदा में होती माइक्रोन्यूट्रियेन्टस की कमी के चलते पैदावार में भी पोषण का स्तर गिरता जा रहा है। इसके लिए बागवानी मिशन चलाया गया है, जिसका कार्यान्वयन बहुत सुस्त है।

पोषण अभियान, जो राष्ट्रीय पोषण मिशन के अंतर्गत चलाया जा रहा है, पर होने वाला 72% व्यय, सूचना एवं संचार तंत्र पर किया जा रहा है। यह भी पाया गया है कि 2017-18 से लेकर नवम्बर 2019 तक इस मिशन के लिए दी गई निधि का केवल 34% ही व्यय किया गया है।

अपने बजट भाषण में सरकार ने कृषि को आधार बनाये रखा, परंतु पोषण को उससे नहीं जोड़ा। चूंकि भारत के 55% वें ग्रामीण परिवार कृषि कर्म के संलग्न हैं, और ग्रामीण क्षेत्रों में ही कुपोषण का स्तर ऊँचा है, इसलिए कृषि-पोषण योजनाओं से स्थिति में जल्दी सुधार किया जा सकता है।

कुपोषण को कम करने के कुछ अन्य उपाय –

* चलाए जा रहे पोषण अभियान के अंतर्गत ही अगर अन्य विभागों को भी इस एक मंच पर लाया जा सके, तो अच्छा होगा।

* 500 करोड़ रुपये से किसानों के 10,000 ऐसे संगठन बनाए जाएं, जो कृषि में पोषण गतिविधियों पर काम करें।

* ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि-पोषण श्रृंखला की अनेक गतिविधियों से युवाओं को जोड़ा जाए।

* इस कृषि-पोषण योजना को पर्याप्त निधि प्रदान की जाए।

* निधि का आवंटन यथास्थिति किया जाए। इस निधि का समुचित उपयोग भी किया जाए।

कुपोषण से देश के कार्यबल और स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पडता है। यह सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 16% को प्रभावित करता है। आर्थिक स्वास्थ्य, जल, स्वच्छता, लिंग एवं सामाजिक दृष्टिकोण को आकार देने में पोषण की बड़ी भूमिका है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित जयश्री बी. एवं आर. गोपीनाथ के लेख पर आधारित। 13 फरवरी, 2020