फुटपाथ की उपेक्षा न हो

Afeias
16 Feb 2018
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Date:16-02-18

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भारत ने अलग-अलग क्षेत्रों में बुनियादी ढांचों के निर्माण में, पिछले कुछ वर्षों में असाधारण प्रगति की है। कई नए हवाई अड्डे, रेपिड़ मेट्रो और सब-वे बनाए गए है। लेकिन कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण फुटपाथ पर किसी ने ध्यान नहीं दिया है।

फुटपाथ का मामला स्थानीय नगरपालिका या नगर निगम के अधीन आता है। आज हमने अपने नगरों को चार चक्कों से पाट देने की ठान ली है। हर छोटे-बड़े शहर में वाहन बढ़ते ही जा रहे हैं, और साइकिल का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। हमारे शरीर के लिए पैदल चलना एक औषधि से कम नहीं है। लेकिन सरकार ने इसे प्रोत्साहित करने के कोई प्रयास नहीं किए हैं।

  • हमारे देश के पास अमेरिका की तुलना में एक-चैथाई भूमि है। लेकिन हमारी जनसंख्या उससे चार गुणा अधिक है। देश में लगभग 10 करोड़ वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं। इस प्रकार हमने स्वयं ही अपने शहरों के वातावरण को दमघोंटू बना रखा है।
  • जहाँ भारत में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, वहीं पश्चिमी देशों ने कई कारणों से पैदल चलने को अपेक्षाकृत अच्छा मानना शुरू कर दिया है।

अमेरिका में, स्वस्थ वातावरण निर्मित करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसमें समूहों के माध्यम से अलग-अलग शहरों और कस्बों में पैदल चलने के फायदे बताकर इसे प्रोत्साहित किया जा रहा है।

यूरोप के कई देशों में साइकिल चलाने और पैदल चलने को एक अभियान का रूप दे दिया गया है। विश्व के सभी बड़े और अच्छे माने जाने वाले नगर इस अभियान में शामिल हो चुके हैं।

  • भारत में वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं में लगभग डेढ़ लाख लोग प्रतिवर्ष मरते हैं। इसके बाद भी हम पैदल चलने के लिए जरूरी फुटपाथ पर ध्यान न देकर अन्य सांस्कृतिक व सामाजिक विषयों पर बड़बोलेपन में लगे रहते हैं। साइकिल चलाने को अलग लेन मिलना तो दूर की बात है, जो फुटपाथ हैं, उन्हीं पर ठेलेवालों का जमावड़ा खत्म नहीं होता। इसके अलावा कभी उनमें बड़े गड्ढे खुदे मिलते हैं, तो कभी नाले खुले मिलते हैं। कुल मिलाकर ये बहुत ही उपेक्षित स्थिति में हैं।
  • स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय ने 46 देशों के सर्वेक्षण से पाया कि पैदल चलने वालों में भारत का 39वां स्थान है।
  • कुछ दशकों पहले तक भारत की स्थिति ऐसी नहीं थी। लोग पैदल चलना पसंद करते थे। वातावरण अपेक्षाकृत शुद्ध था। वाहनों से चोट खाने का उतना भय नहीं था। हमारे नेता भी रथ-यात्रा की जगह पद यात्रा को अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। गांधीजी का दांडी मार्च इसका उदाहरण है।

हमारे सामाजिक कार्यकर्ता पैदल चलने को स्वास्थ्य की दृष्टि से, व्यक्ति को स्थान से जोड़ने की दृष्टि से और पर्यावरण की दृष्टि से आवागमन का सर्वोत्तम साधन मानते हैं। यह अत्यन्त सुरक्षित, सुविधाजनक और आनंददायक होना चाहिए। तभी लोग इसकी ओर आकर्षित होंगे। इसकी जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ समुदायों की भी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लंबे समय तक स्वस्थ रहने के लिए पैदल चलने को एक प्रकार से अनिवार्य माना है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित चिदानन्द राजघट्टा के लेख पर आधारित।

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