फिल्मों की सेंसरशिप
Date: 07-07-16
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क्या है फिल्म सेंसर बोर्ड?
- फिल्म सेंसर बोर्ड या सेट्रल बोर्ड आॅफ फिल्म सर्टिफिकेशन का गठन 1952 में सिनेमेटोग्राफी एक्ट के अंतर्गत किया गया था। यह एक वैधानिक संस्था है।
- किसी फिल्म को जनता को दिखाए जाने से पहले उसे बोर्ड देखता है और इसे दिखाए जाने की अनुमति देता है।
- बोर्ड इस बात की जाँच करता है कि उस फिल्म में संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जो सामान्य से प्रतिबंध हैं, उनका उल्लंघन तो नहीं किया गया है। इसके अलावा उसमें समाज से जुड़े किसी समूह की मर्यादा को भंग तो नहीं किया गया है। फिल्म में शिष्टता, नैतिकता की सीमाओं को तोड़ा तो नहीं गया है।
- चूँकि बोर्ड सरकारी सहायता से चलता है, इसलिए सरकार इसके लिए समय-समय पर कुछ ठोस दिशानिर्देश जारी करती है। वर्तमान में फिल्मों में ऐसे दोहरे अर्थ वाले शब्दों के प्रयोग पर प्रतिबंध है, जो मूल प्रवृतियों को हताहत करते हैं। ऐसे शब्दों और दृश्यों के प्रदर्शन पर रोक है, जो सांप्रदायिक हों, विज्ञान-विरोधी और देश विरोधी हों। साथ ही अश्लीलता या भ्रष्टाचार का प्रदर्शन उस सीमा तक ही करने की छूट है, जहाँ तक वह मानवीय संवेनशीलता पर प्रहार न करें।
- एक तरह से सरकार के ये दिशानिर्देश फिल्म प्रमाणन बोर्ड को अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत अपने विवेक का प्रयोग करके फिल्म को प्रमाणपत्र देने की आजादी दे देते हैं।
- 46 साल पहले फिल्मकार के.ए. अब्बास ने सरकार के बोर्ड को दिए निशानिर्देशों को बेरहम मानकर उनका विरोध किया था। उनका कहना था कि जब मीडिया के अन्य साधनों पर सेंसर बोर्ड जैसा कोई पहरा नहीं है, तो फिल्मों पर क्यों?
‘दि हिन्दू’ में प्रकाशित एक लेख से।
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