प्रशासनिक सेवाओं में सुधार की आवश्यकता

Afeias
16 Feb 2017
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Date:16-02-17

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हाल ही में केंद्र सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो एवं भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी को सेवाकाल में खराब प्रदर्शन के कारण अनिवार्य सेवानिवृत्त दे दी है। मोदी सरकार का यह निर्णय प्रशंसनीय है। इनमें से एक अधिकारी पर आय से अधिक संपति रखने के अंतर्गत जाँच चल रही है। सरकार ने जो कदम अभी उठाया है, इसकी लंबे समय से जरुरत थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय ऐसा करने की कोशिश भर की गई थी। तब से लेकर अब तक इसे कार्यरूप में लाने में 40 वर्ष लग गए। अनेक आलोचक सरकार के इस कदम को दिखावा या प्रतीक मात्र मान सकते हैं। प्रशासनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार जिस प्रकार से रच-बस गया है, उसे देखते हुए सरकार का यह कदम पहाड़ पर हथौड़ी मारने जैसा है।वैसे यह कहा जा सकता है कि प्रशासनिक सेवाओं को सुधारने और उन पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए प्रजातांत्रिक आधार वाली स्वस्थ कार्यकारिणी की आवश्यकता है, जो इस प्रकार के निष्पक्ष निर्णयों के द्वारा हमारे सार्वजनिक प्रशासन की गुणवत्ता में सुधार ला सके।

  • जनता के  प्रति  उत्तरदायित्व

अगर भारतीय मानकों के हिसाब से देखें, तो हमारे अधिकारियों को बहुत अच्छा वेतन दिया जाता है। वेतन आयोग की सिफ़ारिशों में हर बार ही केंद्रीय अधिकारियों के लिए वेतन वृद्धि एवं अतिरिक्त सुविधाओं का तोहफा होता है। पेंशन की भी बहुत अच्छी व्यवस्था है। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में चयन के बाद उनकी आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा जाता है। इसके बावजूद केवल 10% अधिकारी ऐसे हैं, जो अपने कार्यकाल में पूरी वफादारी और ईमानदारी से काम करते हैं। साथ ही प्रशासनिक व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त रखते हैं। प्रधानमंत्री का यह कदम इस बात की ओर संकेत करता है कि इन 10%  के अलावा बचे 90%  अधिकारियों को भी उत्तरदायित्व बनाने की जरूरत है।

अधिकारियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के साथ उनमें उनके प्रति संवेदनशीलता भी जगानी होगी। आज चाहे हम उच्च स्तर पर देखें या निम्न स्तर पर, दोनों ही तरह के विभागों के वरिष्ठ अधिकारी सामान्य जनता की पहुँच से बाहर हैं। यहाँ तक कि वे आम जनता की शिकायत सुनने के लिए फोन पर भी उपलब्ध नहीं होते। माना कि अधिकारियों पर काम का बोझ होता है, परंतु उन्हें यह नही भूलना चाहिए कि सामान्य जन के करों के भुगतान से ही नौकरशाही की गाड़ी दौड़ रही है। लेकिन अब ये सेवाएं, सेवा न रहकर अधिकारियों की आरामगाह बन गई हैं।

  • नौकरशाही के  संकुचन  की  आवश्यकता

नौकरशाहों के खराब प्रदर्शन की बीमारी वहाँ अधिक दिखाई देती है, जहाँ इसका स्वरूप आवश्यकता से अधिक फैला हुआ है। अधिकारियों को किसी तरह से खपाने के लिए अनेक पदों का सृजन किया गया है। इसका नतीजा होता है कि कुछ अधिकारियों के पास तो काम के कुछ ही घंटे होते हैं। काम की सक्रियता के अभाव के कारण हमारे सक्षम अधिकारी भी अक्सर ढीले हो जाते हैं और यही रवैया धीरे-धीरे उनके खराब प्रदर्शन का कारण बनता जाता है।

  • सत्यनिष्ठा की  कमी

प्रदर्शन की निष्क्रियता से भी भयावह स्थिति इन अधिकारियों का सत्यनिष्ठा को दांव पर लगाकर काम करना है। यह बेईमानी नौकरशाही के सभी विभागों में फैली हुई है। भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा, वन-विभाग जैसे केंद्रीय और उत्कृष्टतम सेवाओं में बेईमान अधिकारियों की भरमार है। कुछ युवा अधिकारी शुरूआत में ही भ्रष्ट मार्ग पर चल पड़ते हैं और फिर कभी उसे छोड़ नहीं पाते। ऐसे बहुत से मामले सामने आते हैं, जिनमें ऐसे अधिकारी लिप्त होते हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के पाँच वर्ष भी पूरे नहीं किए होते।केंद्रीय प्रशासनिक सेवाओं की असफलता का यह ठीकरा तो इस क्षेत्र के उच्च एवं वरिष्ठतम अधिकारियों के सिर ही फोड़ा जाना चाहिए। जब किसी जिले का जिलाध्यक्ष या पुलिस अधीक्षक ही आदर्श नहीं होगा, तो वह अपने अधीनस्थ प्रशिक्षार्थी पर क्या छाप छोड़ेगा ?प्रशासनिक सेवाओं का तंत्र अगर अभी भी चल रहा है या बचा हुआ है, तो सिर्फ उन अधिकारियों की बदौलत, जो शुरू से लेकर आज तक सत्यनिष्ठा और कड़ी मेहनत के प्रतिरूप बने हुए हैं।

  • न्यायपालिका की  भूमिका

प्रशासनिक सेवाओं को सुधारने में न्यायपालिका एक बहुत बड़ा रोड़ा है। सरकार जब भी किसी भ्रष्ट अधिकारी के विरूद्ध कड़े कदम उठाना चाहती है, न्यायपालिका उसे पलट देती है। न्यायालयों को चाहिए कि वे प्रशासनिक अधिकारियों के विरूद्ध आए मामलों की बारीकी से जाँच करें, और अगर वह इस बात से संतुष्ट है कि आरोप बेबुनियाद नहीं हैं, तो उसे इन मामलों में निष्पक्ष न्याय करना चाहिए। कुछ ईमानदार अधिकारियों पर लगे बेबुनियाद आरोपों से उनकी रक्षा करते-करते न्यायपालिका कब भ्रष्ट अधिकारियों की भी रक्षा करने लगी है, इसका शायद उसे भान ही नहीं है। एक संतुलित और उद्देश्यपूर्ण नौकरशाही की स्थापना करने से पहले प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के लंबे ट्रैक रिकार्ड का निपटारा करना होगा। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसे ट्रिब्यूनल गठित करने की नौबत कम से कम आए। इसके लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय को कुछ सुधार करने होंगे।

हिंदू में प्रकाशित आर. के. राघवन के लेख पर आधारित।