पेटेंट पर विकसित देशों की दादागिरी को रोकना जरूरी
Date: 13-06-16
भारत जैसे विकासशील देशों के सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में दवाइयों की अहम् भूमिका है।
पिछले एक दशक में पर्यावरण एवं जीवन पद्धति में बदलाव की वजह से संक्रामक और असंक्रामक रोगों की संख्या बहुत बढ़ गई है।
बढ़ती बीमारियों के दौर में भारत जैसे कम एवं सामान्य आय वाले देशों में कम कीमत की जेनेरिक दवाइयों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।
जेनेरिक दवाइयां क्या हैं?
ये दवाइयां किसी बड़ी दवाई कंपनी की दवाईयों के समरुप होती हैं। इन दवाइयों को पेटेंट कानून के अनुबंधित समय के अंदर अविष्कारक कंपनी से बिना लाइसेंस लिए बनाया और बेचा जा सकता है। इनको बेचने के लिए मालिकाना हक रखने वाली कंपनी का नाम देना जरूरी नहीं होता।
इन जेनेरिक दवाइयों की कीमत अमेरिका की एकाधिकार रखने वाली कंपनियों की तुलना में भारत में बहुत ही कम है। साथ ही भारत में इनका निर्माण करने वाली कंपनियों में प्रतिस्पर्धा के कारण कीमत और भी कम हो जाती है। जैसे अमेरिका में एचआईवी के शुरूआती उपचार के लिए 16 लाख लग जाते हैं, जबकि भारतीय एड्स कार्यक्रम में इसकी कीमत 7,000 रुपए ही आती है।
जेनेरिक दवाइयों के निर्माण में भारत की भूमिका
जेनेरिक दवाइयों के निर्माण के लिए भारत के पास कच्चा माल, जिसे एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडियेन्ट्स (API) भी कहते हैं, तैयार करने की तकनीकी क्षमता अच्छी है। भारत में तैयार की गई जेनेरिक इवाइयाँ विश्व में सबसे सस्ती हैं। अगर भारत में इन दवाइयों का निर्माण बंद हो जाए और अगर इन दवाइयों को सिर्फ पेटेंट प्राप्त कंपनी ही बनाये, तो इनके दाम आसमान छूने लगेंगे। साथ ही इनकी उपलब्धता भी बहुत कम हो जाएगी।
सरकार का रूख
भारतीय वाणिज्य मंत्रालय को ‘फ्री ट्रेड एग्रीमेंट’ के अंतर्गत यूरोपीय देशों से होने वाली रिजनल काम्प्रीहेन्सिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) के दौरान बौद्धिक संपदा से जुड़े समझौते करते हुए काफी सतर्क रहना होगा, अन्यथा भारतीय उत्पादकों पर इसका बहुत प्रभाव पड़ेगा।
हांलाकि भारत ने 2005 में अपने पेटेंट कानून में सुधार करते हुए इसके खण्ड 3 (डी) में स्पष्ट कर दिया है कि यदि किसी दवा के फार्मूले में उसकी क्षमता को बढ़ाने वाले सुधार नहीं किए गए हैं, तो वह पेटेंट की अवधि में वृद्धि के उपयुक्त नहीं मानी जाएगी।
अमेरिका की परेशानी
भारत की सस्ती दवाइयों को बंद करने के लिए अमेरिका के विदेश व्यापार मंत्रालय ने ‘स्पेशल 301 रिपोर्ट’ तैयार की है। इस रिपोर्ट में उन्होंने भारत को निगरानी-सूची में रखा है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य भारतीय वाणिज्य एवं व्यापार पर बौद्धिक संपदा से जुड़ी अमेरिका की मांगों का दबाव बनाना है। इतना ही नहीं अमेरिका इस क्षेत्र में ‘एक्शन प्लान’ लेकर आ रहा है, जिसमें अमेरिकी दवाई कंपनियों को होने वाले नुकसान की जिम्मेदार भारतीय बौद्धिक संपदा कानून को ठहराया जाएगा।
हमारी वाणिज्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने स्पष्ट कर दिया है कि ‘रिपोर्ट 301’ विश्व व्यापार संगठन कानून के विरुद्ध है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि दो देशों के बीच विवादों को ‘डिस्प्यूट सेटलमैंट बॉड़ी’ के पास ले जाना चाहिए।
विशेष बात यह है कि अमेरिकी पेटेंट की दादागिरी ने खुद अमेरिका की स्वास्थ्य सेवाओं को बहुत खर्चीला बना दिया है। वहाँ की जनता इससे बहुत परेशान है।
जबकि भारत पूरी तरह से बौद्धिक संपदा पर बने विश्व व्यापार संगठन के कानूनों का पालन करते हुए सस्ती जेनेरिक दवाइयाँ बनाकर सभी विकासशील देशों को राहत पहुँचा रहा है।
‘द हिंदू’ में बी.विनोद कुमार के लेख पर आधारित